SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीसवाँ शतक : उद्देशक-५] [४१ (११) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वगुरु, सर्वउष्ण और सर्वस्निग्ध होता है। (१२) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वगुरु, सर्वउष्ण और सर्वरूक्ष होता है । (१३) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, सर्वशीत और सर्वस्निग्ध होता है। (१४) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, सर्वशीत और सर्वरूक्ष होता है। (१५) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, सर्वउष्ण और सर्वस्निग्ध होता है। (१६) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, सर्वउष्ण और सर्वरूक्ष होता है। इस प्रकार ये सोलह भंग होते हैं। ___ यदि पांच स्पर्श वाला होता है, तो (१) सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है । (२) अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होता है। (३) अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होता है। (५-८) अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वउष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है, इनके चार भंग। (९-१२) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वशीत, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होते हैं, इनके भी चार भंग। (१३-१६) अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वउष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष इसके भी पूर्ववत् चार भंग। इस प्रकार कर्कश के साथ सोलह भंग होते हैं । (१-४) अथवा सर्वमृदु, सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है, इस (मृदु) के भी पूर्ववत् चार भंग होते हैं। पहले के १६ और ये १६ भंग मिल कर कुल ३२ भंग होते हैं। (१-१६) अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वस्निग्ध, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण के भी १६ भंग होते हैं। (१-१६) अथवा सर्वकर्कश; सर्वगुरु, सर्वरूक्ष, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण के १६ भंग; दोनों (१६+१६-३२) मिला कर बत्तीस भंग होते हैं। ___ अथवा (१-३२) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वशीत, सर्वस्निग्ध, एकदेश गुरु और एकदेश लघु; के पूर्ववत् बत्तीस भंग होते हैं । अथवा (१-३२) कदाचित् सर्वगुरु, सर्वशीत, सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश और एकदेश मृदु के भी पूर्ववत् बत्तीस भंग होते हैं। इस प्रकार सब मिला कर पांच स्पर्श वाले १२८ भंग हुए। यदि छह स्पर्श वाला होता है, तो (१) सर्वकर्कश, सर्वगुरु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है; कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष; इस प्रकार यावत्-सर्वकर्कश, सर्वलघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष; इस प्रकार सोलहवें भंग तक कहना चाहिए। इस प्रकार ये १६ भंग हुए। (२) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; यहाँ भी (पूर्ववत् सब मिलकर) सोलह भंग होते हैं । (३) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वगुरु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, यहाँ भी सब मिल कर सोलह भंग होते हैं । (४) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष यहाँ भी कुल सोलह भंग होते हैं। ये सब मिल कर १६+१६+१६+१६-६४ भंग होते हैं। [१-६४] अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वशीत, एकदेशगुरु, एकदेशलघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है; इस प्रकार यावत्-सर्वमृदु, सर्वउष्ण, अनेकदेश लघु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश स्निग्ध और
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy