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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे सीए, देसे उसिणे; एवं निद्रेण वि समं चउसदिं भंगा कायव्वा। सव्वे लुक्खे, देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे सीए, देसे उसिणे; एवं लुक्खेण वि समं चउसटुिं भंगा कायव्वा जाव सव्वे लुक्खे, देसा कक्खडा, देसा मउया, देसा गरुया, देसा लहुया, देसा सीया, देसा उसिणा। एवं सत्तफासे पंच बारसुत्तरा भंगसया भवंति।
जति अट्ठफासे—देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे सीते, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे ४; देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे सीते, देसा उसिणा, देसे निद्धे, देसे लुक्खे ४; देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसा सीता, देसे उसिणा, देसे निद्धे, देसे लुक्खे ४; देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसा सीता, देसा उसिणा, देसे निद्धे, देसे लुक्खे ४; एए चत्तारि चउक्का सोलस भंगा। देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसा लहुया, देसे सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे, एवं एए गरुएणं एगत्तएणं, लहुएणं पोहत्तएणं सोलस भंगा कायव्वा। देसे कक्खडे, देसे मउए, देसा गरुया, देसे लहुए, देसे सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे ४, एए वि सोलस भंगा कायव्वा। देसे कक्खडे, देसे मउए, देसा गरुया, देसा लहुया, देस सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे; एए वि सोलस भंगा कायव्वा। सव्वेते चउससढि भंगा कक्खड-मउएहिं एगत्तएहि। ताहे कक्खडेणं एगत्तएणं, मउएणं पुहत्तएणं एए चेव चउसद्धिं भंगा कायव्वा। ताहे कक्खडेणं पहत्तएणं, मउएणं एगत्तएणं चउसद्रिं भंगा कायव्वा। ताहे एतेहिं चेव दोहि वि पुहत्तएहिं चउसद्धिं भंगा कायव्वा जाव देसा कक्खडा, देसा मउया, देसा गरुया, देसा लहुया, देसा सीता, देसा उसिणा, देसा निद्धा, देसा लुक्खा-एसो अपच्छिमो भंगो। सन्वेते अट्ठफासे दो छप्पणा भंगसया भवंति।
एवं एए बादरपरिणए अणंतपएसिए खंधे सव्वेसु संजोएसु बारस छण्णउया भंगसया भवंति।
[१४ प्र.] भगवन् ! बादर-परिणाम वाला (स्थूल) अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण वाला होता है, इत्यादि प्रश्न ?
[१४ उ.] गौतम ! अठारहवें शतक के छठे उद्देशक में कथित निरूपण के समान 'कदाचित् आठ स्पर्श वाला कहा गया है,' (यहाँ तक) जानना चाहिए। अनन्तप्रदेशी बादर परिणामी स्कन्ध के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के भंग, दशप्रदेशी स्कन्ध के समान कहने चाहिए।
यदि वह चार स्पर्श वाला होता है, तो (१) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत और सर्वस्निग्ध होता है, (२) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत और सर्वरूक्ष होता है, (३) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वउष्ण और सर्वस्निग्ध होता है, (४) कदाचित् सर्वगुरु, सर्वउष्ण और सर्वरूक्ष होता है । (५) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु (हलका), सर्वशीत और सर्वस्निग्ध होता है। (६) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वशीत, और सर्वरूक्ष होता है। (७) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वउष्ण और सर्वस्निग्ध होता है। (८) कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वउष्ण और सर्वरूक्ष होता है। (९) कदाचित् सर्वमृदु (कोमल), सर्वगुरु, सर्वशीत और सर्वस्निग्ध होता है। (१०) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वगुरु, सर्वभीत और सर्वरूक्ष होता है।