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वीसवां शतक : उद्देशक-५]
[३७ स्पर्श के ३६ भंग चतुःप्रदेशी के समान समझने चाहिये।
विवेचन–नवप्रदेशी स्कन्ध के वर्णादि-विषयक पांच सौ चौदह भंग-प्रस्तुत नौ प्रदेशी स्कन्ध के विषय में वर्ण के २३६, गन्ध के ६, रस के २३६ और स्पर्श के ३६, ये कुल मिलकर ५१४ भंग होते
दशप्रदेशी स्कन्ध में वर्णादि के भंगों का निरूपण
१०. दसपदेसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा।
गोयमा ! सिय एगवण्णे जहा नवपदेसिए जाव सिय चउफासे पन्नत्ते। जति एगवण्णे, एगवा Tदुवण्ण-तिवण्ण-चउवण्णा जहेव नवपएसियस्स। पंचवण्णे वि तहेव, नवरं बत्तीसतिमो वि भंगो भण्णति। एवमेते एक्कग-दुयग-तियग-चउक्कग-पंचगसंजोएसु दोन्नि सत्तत्तीसा भंगसया भवंति।
गंधा जहा नवपएसियस्स। रसा जहा एयस्स चेव वण्णा। फासा जहा चउप्पएसियस्स। [१० प्र.] भगवन् ! दशप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण वाला होता है, इत्यादि प्रश्न ? . [१० उ.] गौतम ! नव-प्रदेशिक स्कन्ध के समान कदाचित् चार स्पर्श वाला होता है तक कहना चाहिए। यदि एकवर्णादि वाला हो तो नव-प्रदेशिक स्कन्ध के एक वर्ण, दो वर्ण, तीन वर्ण और चार वर्ण(सम्बन्धी भंग) के समान कहना चाहिए। यदि वह पांच वर्ण वाला हो तो नवप्रदेशी के समान समझना चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ अनेकदेश काला, अनेकदेश नीला, अनेकदेश पीला और अनेकप्रदेश श्वेत होता है। यह बत्तीसवाँ भंग अधिक कहना चाहिए।
इस प्रकार असंयोगी ५, द्विकसंयोगी ४०, त्रिकसंयोगी ८०, चतुष्कसंयोगी ८० और पंचसंयोगी ३२, ये सब मिला कर वर्ण के २३७ भंग होते हैं।
गन्ध के ६ भंग नवप्रदेशी-सम्बन्धी के समान हैं। रस के २३७ भंग इसी के वर्ण के समान होते हैं। स्पर्शसम्बन्धी ३६ भंग चतुःप्रदेशी के समान होते हैं। ११. जहा दसपएसिओ एवं संखेजपएसिओ वि।
[११] दशप्रदेशी स्कन्ध के समान संख्यातप्रदेशी स्कन्ध (के) भी (वर्णादि सम्बन्धी भंग कहने चाहिए)।
१२. एवं असंखेजपएसिओ वि। [१२] इसी प्रकार असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी समझना चाहिए।