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________________ ३४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है (१२) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और अनेकदेश श्वेत होता है, (१३) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और अनेकदेश श्वेत होता है, (१४) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, अनेकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (१५) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, अनेकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (१६) कदाचित् अनेकदेश काला, अनेकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश शुक्ल होता है। इस प्रकार सोलह भंग होते हैं । अर्थात्-असंयोगी ५, द्विकसंयोगी ४०, त्रिसंयोगी ८०,चतु:संयोगी ७५ और पंचसंयोगी १६ भंग होते हैं। कुल मिलकर वर्ण के २१६ भंग होते हैं। ___ गन्ध के छह भंग चतुःप्रदेशी स्कन्ध के समान होते हैं। रस के २१६ भंग इसी के वर्ण के समान कहने चाहिए। स्पर्श के भंग ३६ चतुःप्रदेशी स्कन्ध के समान कहने चाहिये। विवेचन—सप्तप्रदेशी स्कन्ध में वर्णादि विषयक चार सौ चौहत्तर भंग–सप्तप्रदेशी स्कन्ध के विषय में वर्ण के २१६, गन्ध के ६, रस के २१६ और स्पर्श के ३६, यो कुल मिला कर ४७४ भंग होते हैं। अष्टप्रदेशी स्कन्ध में वर्णादि भंगों का निरूपण ८. अट्ठपदेसियस्स णं भंते ! खंधे० पुच्छा। गोयमा ! सिय एगवण्णे जहा सत्तपदेसियस्स जाव सिय चतुफासे पन्नत्ते। जति एगवण्णे, एवं एगवण्ण-दुवण्ण-तिवण्णा ज़हेव सत्तपएसिए। जति चउवण्णे-सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दए य १; सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दगा य २; एवं जहेव सत्तपदेसिए जाव सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियगा य, हालिद्दगे य १५, सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियगा य, हालिद्दगा य १६; एए सोलस भंगा। एवमेते पंच चउक्कगसंजोगा; सव्वमेते असीति भंगा ८० । जति पंचवण्णे-सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दए य, सुक्किलए य १; सिय कालगे य, नीलगे य, लोहियगे य, हालिद्दए य, सुक्किलगा य २; एवं एएणं कमेणं भंगा चारेयव्वा जाव सिय कालए य, नीलगा य, लोहियगा य, हालिद्दगा य, सुक्किलगे य १५--एसो पन्नरसमो भंगो; सिय कालगा य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दए य, सुक्किलए यं १६, सिय कालगा य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दए य, सुक्किलगा य १७; सिय कालगा य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दगा य, सुक्किलए य १८; सिय कालगा य, नीलगे य, लोहियए य, हालिद्दगा य, सुक्किलगा य १९; सिय कालगा य, नीलए य, लोहियगा य, हालिद्दए य, सुक्किलए य २०; सिय कालगा य, नीलए य, लोहियगा य, हालिद्दए य, सुक्किलगा य २१; सिय कालगा य, नीलए य, लोहियगा य, हालिद्दगा य, सुक्किलए य २२; सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियगे य, हालिद्दए य, सुक्किलगे य २३; सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियए य, हालिद्दए य, सुक्किलगा य २४; सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियए य, हालिद्दगा य, सुक्किलए य २५; सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियगा य, हालिद्दए य, सुक्किलए य २६; एए पंचगसंजोएणं छब्बीसं भंगा भवंति। एवामेव सपुव्वावरेणं एक्कग-दुयग-तियग-चउक्कग-पंचगसंजोएहिं दो एक्कतीसं भंगसया भवंति।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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