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________________ ३० ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 1 नीला और एकदेश पीला होता है। इस त्रिक-संयोग से भी सात भंग होते हैं । (१५ - २१) इसी प्रकार काला, नीला और श्वेत के भी सात भंग होते हैं । (२२ - २८ ) ( इसी प्रकार ) काला, लाल और पीला के भी सात भंग होते हैं । (२९-३५) काला, लाल और श्वेत के सात भंग होते हैं । अथवा (३६-४२) काला, पीला और श्वेत के साथ भंग होते हैं । अथवा (४३-४९) नीला, लाल और पीला के भी सात भंग होते हैं। अथवा (५०-५६) नीला, लाल और श्वेत के सात भंग होते हैं । अथवा (५७-६३) नीला, पीला और श्वेत के सात भंग होते हैं । अथवा (६४-७०) लाल, पीला और श्वेत के सात भंग होते हैं। इस प्रकार दस त्रिक-संयोगों के प्रत्येक के सात-सात भंग होने से ७० भंग होते हैं । यदि वह चार वर्ण वाला हो तो, (१) कदाचित् एकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल और एकदेश पीला होता है । (२) अथवा एकदेश काला, नीला और लाल तथा अनेकदेश पीला होता है । (३) अथवा कदाचित् एकदेश काला, नीला, अनेकदेश लाल और एकदेश पीला होता है । (४) अथवा एकदेश काला, अनेकदेश नीला, एकदेश लाल और एकदेश पीला होता है । (५) अथवा अनेकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल और एकदेश पीला होता है। इस प्रकार चतु:संयोगी पांच भंग होते हैं। इसी प्रकार ( ६१०) कदाचित् एकदेश काला, नीला, लाल और श्वेत के भी पांच भंग (पूर्ववत्) होते हैं । (११-१५) तथैव एकदेश काला, नीला, पीला और श्वेत के भी पांच भंग होते हैं। इसी प्रकार (१६-२० ) अथवा काला, लाल, पीला और श्वेत के भी पांच भंग होते हैं। अथवा (२१ - २५) नीला, लाल, पीला और श्वेत के पांच भंग होते. हैं। इस प्रकार चतु:संयोगी पच्चीस भंग होते हैं। यदि वह पांच वर्ण वाला हो तो काला, नीला, लाल, पीला और श्वेत होता है। इस प्रकार असंयोगी ५, द्विकसंयोगी ४०, त्रिकसंयोगी ७०, चतु:संयोगी २५ और पंचसंयोगी एक, इस प्रकार सब मिलकर वर्ण के १४१ भंग होते हैं । गन्ध के चतुःप्रदेशी स्कन्ध के समान यहाँ भी ६ भंग होते हैं। वर्ण के समान रस के भी १४१ भंग होते हैं। स्पर्श के ३६ भंग चतुः प्रदेशी स्कन्ध के समान होते हैं । विवेचन — पञ्चप्रदेशी स्कन्ध के वर्णादि-सम्बन्धी तीन सौ चौबीस भंग - पंचप्रदेशी स्कन्ध के विषय में वर्ण के १४१, गन्ध के ६, रस के १४१, और स्पर्श के ३६, ये कुल मिला कर ३२४ भंग होते हैं । षट्प्रदेशी स्कन्ध में वर्णादि के भंगों का निरूपण ६. छप्पएसिए णं भंते ! खंधे कतिवण्णे० ? एवं जहा पंचपएसिए जाव सिय चउफासे पन्नत्ते । जदि एगवण्णे, एगवण्ण-दुवण्णा जा पंचपदेसियस्स । जति तिवण्णे- सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य एवं जहेव पंच पएसियस्स एत्त भंगा जाव सिय कालगा य, नीलगाय, लोहियए य ७; सिय कालगा य, नीलगाय, लोहियगा य ८, एए अट्ठ भंगा; एवमेते दस तियासंजोगा, एक्केक्के संजोगे अट्ठ भंगा; एवं सव्वे वि तियगसंजोगे असीतिभंगा। जति चउवण्णे — सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दए य १; सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दगा य २; सिय कालए य, नीलए य, लोहियगा य, हालिद्दए य ३; सिय कालए य, नीलए य, लोहियगा य, हालिद्दगा य ४; सिय कालए य नीलया य, लोहियए य,
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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