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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
(३) अथवा एकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है अथवा (४) एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं । (५) अथवा एकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है। अथवा (६) एकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं । अथवा (७) एकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता हैं । अथवा (८) एकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं । अथवा (९) अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है। इस प्रकार चार स्पर्श के सोलह भंग, यावत् — अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं, (यहाँ तक कहने चाहिए) । इस प्रकार द्विक-संयोगी ४, त्रिकसंयोगी १६ और चतु:संयोगी १६, ये सब मिल कर स्पर्श सम्बन्धी ३६ भंग होते हैं ।
विवेचन — चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के वर्णादि सम्बन्धी दो सौ बाईस भंग — प्रस्तुत सूत्र में चतुःप्रदेशी स्कन्ध के विषय में वर्ण के ९०, गन्ध के ६, रस के ९० और स्पर्श के ३६, ये सब मिलकर २२२ भंग होते हैं । चतुःप्रदेशी स्कन्ध के रससम्बन्धी ९० भंग — रस के द्विकसंयोगी और त्रिकसंयोगी दस-दस भंग होते हैं और एक-एक संयोग में एकवचन और अनेकवचन द्वारा चतुर्भंगी होने से १०x२= २० को चार गुना (२०x४ ) करने से इसके कुल ८० भंग होते हैं। चतु:संयोगी भंग के अंक क्रम से ५ भंग निम्नोक्त रेखाचित्र के अनुसार जानना — १ तीखा, -२ कडुआ, ३ कसैला, ४ खट्टा, ५ मीठा इस प्रकार चतु:संयोगी ५ भंग और असंयोगी ५ भाग मिलाने से रस के कुल (१०+१०)×४=८०+५+५=९० भंग होते हैं।
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(क) भगवती. चतुर्थ खण्ड (गुजराती. अनुवाद) (पं. भगवानदासजी) पृ. १०३ - १०४ (ख) भगवती (हिन्दी विवेचन) भा. ६ ( पं. घेवरचन्दजी) पृ. २८५८
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चार स्पर्श के १६ भंग — चतुष्प्रदेशी स्कन्ध में चार स्पर्श वाले १६ भंग होते हैं । उनमें से ९ भंग तो मूलपाठ में कहे गए हैं। शेष ७ भंग इस प्रकार हैं- (१०) अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष । (११) अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष । (१२) अथवा अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष । (१३) अथवा अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध, एकदेश रूक्ष । (१४) अथवा अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश, स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष, (१५) अथवा अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष । अथवा (१६) अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष ।'