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________________ [१७ तइओ उद्देसओ : 'पाणवहे' तृतीय उद्देशक : प्राणवध ( आदि-विषयक) आत्मा में प्राणातिपात से लेकर अनाकारोपयोग धर्म तक का परिणमन १. अह भंते ! पाणातिवाए मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले, पाणातिवायवेरमणे जाव मिच्छदंसणसल्लविवेगे, उप्पत्तिया जाव पारिणामिया, उग्गहे जाव धारणा, उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे, नेरइयत्ते, असुरकुमारत्ते जाव वेमाणियत्ते, नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मदिट्ठी ३, चक्खुदंसणे ४,२ आभिणिबोहियणाणे जाव' विभंगनाणे, आहारसन्ना ४, ओरालियसरीरे ५,५ मणोजोए ३, सागारोवयोगे अणागारोवयोगे, जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वे ते णऽन्नत्थ आताए परिणमंति ? हंता, गोयमा ! पाणातिवाए जाव ते णऽन्नत्थ आताए परिणमंति। .[१ प्र.] भगवन् ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत्, मिथ्यादर्शनशल्य, औत्पत्तिकी यावत् पारिणामिकी बुद्धि, अवग्रह यावत् धारणा, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम; नैरयिकत्व, असुरकुमारत्व यावत् वैमानिकत्व, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म, कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिध्यादृष्टि, चक्षुदर्शन यावत् केवलदर्शन, आभिनिबोधिकज्ञान यावत् विभंगज्ञान, आहारसंज्ञा यावत् परिग्रहसंज्ञा, औदारिकशरीर यावत् कार्मण शरीर, मनोयोग, वचनयोग, काययोग तथा साकारोपयोग एवं अनाकारपयोग; ये सब और इनके जैसे अन्य धर्म; क्या आत्मा के सिवाय अन्यत्र परिणमन नहीं करते हैं ? [१ उ.] हाँ, गौतम ! प्राणातिपात से लेकर अनाकारोपयोग तक सब धर्म; आत्मा के सिवाय अन्यत्र परिणमन नहीं करते हैं। विवेचन—प्राणातिपात आदि आत्मा में परिणत होते हैं या अन्यत्र ? – प्राणातिपात आदि सभी आत्मा के पर्याय होने से आत्मा को छोड़ कर अन्यत्र परिणमन नहीं करते; क्योंकि पर्याय पर्यायी के साथ कथञ्चित् एक रूप होते हैं, इसलिए ये सब पर्याय आत्मरूप ही हैं, आत्मा से भिन्न पदार्थ में ये परिणतं नहीं १. ३ का अंक शेष दो दृष्टियों-मिथ्यादृष्टि एवं सम्यग्मिथ्यादृष्टि का सूचक है। २. ४ का अंक शेष तीन दर्शन—अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन का सूचक है। ३. 'जाव' पद से यहाँ 'सुयनाणे, ओहिनाणे, मणपजवनाणे केवलनाणे, मतिअन्नाणे, सुयअन्नाणे' यह पाठ समझना चाहिए। ४. ४ का अंक शेष तीन—'निद्दासन्ना, भयसन्ना, मेहुणसन्ना' का सूचक है। ५. ५ का अंक 'वेउब्वियसरीरे, आहारगसरीरे, तेयगसरीरे कम्मगसरीरे' पाठ का सूचक है। ६. ३ का अंक-'वइजोगे कायजोगे' इस पाठ का सूचक है।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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