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________________ १६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पुद्गल-शरीरों के पूरण—गलन होने से पुद्गल है।मानव-जो नवीन न हो, अनादि (प्राचीन) हो, वह मानव है। कर्ता-कर्मों का कर्ता विकर्ता—विविधरूप से कर्मों का कर्ता-विकर्ता—अथवा विच्छेदक। जगत्-अतिशयगमनशील (विविधगतियों में) होने से। जन्तु—जो जन्म ग्रहण करता है। योनि–दूसरों को उत्पन्न करने वाला। स्वयम्भू-स्वयं (अपने कर्मों के फलस्वरूप) होने वाला। सशरीरी–शरीरयुक्त होने के कारण सशरीरी। नायक-कर्मों का नेता । अन्तरात्मा—जो अन्तः अर्थात् मध्यरूप आत्मा हो, शरीर रूप न हो, वह । ये सब जीव के पर्यायवाची शब्द हैं।' पुद्गलास्तिकाय के पर्यायवाची शब्द . ८. पोग्गलत्थिकायस्स णं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पन्नत्ता, तं जहा—पोग्गले ति वा, पोग्गलत्थिकाये ति वा, परमाणुपोग्गले ति वा, दुपदेसिए ति वा, तिपदेसिए ति वा जाव असंखेजपदेसिए ति वा अणंतपदेसिए ति वा खंधे, जे यावऽन्ने तहप्पकारा सव्वे ते पोग्गलत्थिकायस्स अभिवयणा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥वीसइमे सए : बीओ उद्देसओ समत्तो॥२०-२॥ [८ प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के कितने अभिवचन कहे गए हैं ? [८ उ.] गौतम ! (उसके) अनेक अभिवचन कहे गए हैं, यथा—पुद्गल, पुद्गलास्तिकाय, परमाणुपुद्गल, अथवा द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशीस्कन्ध; ये और इसके समान अन्य अनेक अभिवचन पुद्गल के हैं। ___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। ॥ वीसवाँ शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त॥ *** १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७७६-७७७ (ख) भगवती. विवेचन भा. ६ (पं. घेवरचंदजी), पृ. २८४०-४१ (ग) प्राणाः द्वि-त्रि-चतुः प्रोक्ता, भूतास्तु तरवः स्मृताः। जीवाः पंचेन्द्रियाः प्रोक्ताः शेषाः सत्त्वा उदीरिताः॥
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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