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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न है।
[७ उ.] गौतम ! (इसका समाधान) पूर्ववत् द्वीन्द्रियजीवों के समान (जानना चाहिये।) विशेष यह है कि इनके छहों लेश्याएँ और तीनों दृष्टियाँ होती हैं। इनमें चार ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं। तीनों योग होते हैं।
८. तेसी णं भंते ! जीवाणं एवं सन्ना ति वा पण्णा ति वा जाव वती ति वा 'अम्हे णं आहारमाहारेमो ?'
गोयमा ! अत्थेगइयाणं एवं सण्णा ति वा पण्णा ति वा मणो ति वा वती ति वा 'अम्हे णं आहारमाहारेमो', अत्थेगइयाणं नो एवं सन्ना ति वा जाव वती ति वा 'अम्हे णं आहारमाहारेमो', आहारेंति पुण ते।
[८ प्र.] भगवन् ! क्या उन (पंचेन्द्रिय) जीवों को ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है कि हम आहार ग्रहण करते हैं ?'
[८ उ.] गौतम ! कितने ही (संज्ञी) जीवों को ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है कि 'हम आहार ग्रहण करते हैं, जबकि कई (असंज्ञी) जीवों को ऐसी संज्ञा यावत् वचन नहीं होता है कि 'हम आहार ग्रहण करते हैं', परन्तु वे आहार तो करते ही हैं।
९. तेसि णं भंते ! जीवाणं एवं सन्ना ति वा जाव वती ति वा 'अम्हे णं इट्ठाणिढे सद्दे, इटाणि? रूवे, इट्ठाणिट्ठा गंधे, इट्ठाणिद्वे रसे, इट्ठाणिढे फासे पडिसंवेदेमो ?' ___ गोयमा ! अत्थेगइयाणं एवं सन्ना ति वा जाव वती ति वा 'अम्हे णं इटाणिढे सद्दे जाव इट्ठाणिढे फासे पडिसंवेदेमो', अत्थेगइयाणं नो एवं सण्ण ति वा जाव वती इ वा 'अम्हे णं इट्ठाणिढे सद्दे जाव इट्ठाणिढे फासे पडिसंवेदेमो', पडिसंवेदेति पुण ते।
। [९ प्र.] भगवन् ! क्या उन (पंचेन्द्रिय) जीवों को ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है कि हम इष्ट या अनिष्ट शब्द, इष्ट या अनिष्ट रूप, इष्ट या अनिष्ट गन्ध, इष्ट या अनिष्ट रस अथवा इष्ट या अनिष्ट स्पर्श का अनुभव (प्रतिसंवदेन) करते हैं ?
[७ उ.] गौतम ! कतिपय (संज्ञी) जीवों को ऐसी संज्ञा, यावत् वचन होता है कि हम इष्ट या अनिष्ट शब्द यावत् इष्ट या अनिष्ट स्पर्श का अनुभव करते हैं। किसी-किसी (असंज्ञी) को ऐसी संज्ञा यावत् वचन नहीं होता है। परन्तु वे (शब्द आदि का) संवेदन (अनुभव) तो करते ही हैं। .
१०. ते णं भंते ! जीवा किं पाणातिवाए उवक्खाइज्जंति० पुच्छा ? ।
गोयमा ! अत्थेगतिया पाणातिवाए वि उवक्खाइज्जति जाव मिच्छादसणसल्ले वि उवक्खाइजंति; अत्थेगतिया नो पाणातिवाए उवक्खाइजंति, नो मुसावादे जाव नो मिच्छादंसणसल्ले उवक्खाइजंति।