________________
परिवर्तन होता है। एक परमाणु स्कन्धरूप में परिणत होकर पुनः परमाणु हो जाय तो कम से कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल लग सकता है। व्यणुक-आदि व त्र्यणुक-आदि स्कन्धरूप में परिणत होने के बाद वह परमाणु पुनः परमाणु रूप में आये तो कम से कम एक समय और अधिक से अधिक अनन्त काल लग सकता है। एक परमाणु या स्कन्ध किसी आकाशप्रदेश में अवस्थित है । वह किसी कारण-विशेष से वहाँ से चल देता है और पुन: उसी आकाशप्रदेश में कम से कम एक समय में और अधिक से अधिक अनन्तकाल के पश्चात् आता है।
परमाणु द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टि से अप्रदेशी है। काल की दृष्टि से एक समय की स्थिति वाला परमाणु अप्रदेशी है और उससे अधिक समय की स्थिति वाला सप्रदेशी है। भाव की दृष्टि से एक गुण वाला अप्रदेशी है और अधिक गुण वाला सप्रदेशी है। इस प्रकार अप्रदेशित्व और सप्रदेशित्व के सम्बन्ध में भी वहाँ विस्तार से चर्चा है।
पुद्गल जड़ होने पर भी गतिशील है। भगवतीसूत्र शतक १६, उद्देशक ८ में कहा है—पुद्गल का गतिपरिणाम स्वाभाविक धर्म है। धर्मास्तिकाय उसका प्रेरक नहीं पर सहायक है। प्रश्न है—परमाणु में गति स्वत: होती है या जीव के द्वारा प्रेरणा देने पर होती है ? उत्तर है—परमाणु में जीवनिमित्तक कोई भी क्रिया या गति नहीं होती, क्योंकि परमाणु जीव के द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता और पुद्गल को ग्रहण किये बिना पुद्गल में परिणमन कराने की जीव में सामर्थ्य नहीं है।
भगवतीसूत्र शतक ५, उद्देशक ७ में कहा गया है—परमाणु सकम्प भी होता है और अकम्प भी होता है। कदाचित् वह चंचल भी होता है, नहीं भी होता। उसमें निरन्तर कम्पनभाव रहता ही हो, यह बात भी नहीं है और निरन्तर अकम्पनभाव रहता हो, यह बात भी नहीं है। व्यणुक स्कन्ध में कदाचित् कम्पन और कदाचित् अकम्पन दोनों होते हैं। उनके द्ववंश होने से उनमें देशकम्पन और देशअकम्पन दोनों प्रकार की स्थिति होती है। त्रिप्रदेशी स्कन्ध में भी द्विप्रदेशी स्कन्ध के सदृश कम्प और अकम्प की स्थिति होती है। केवल देशकम्प में एकवचन और द्विवचन सम्बन्धी विकल्पों में अन्तर होता है। जैसे एक देश में कम्प होता है, देश में कम्प नहीं होता। देश में कम्प होता है, देशों में कम्प नहीं होता। देशों में कम्प होता है देश में कम्प नहीं होता। इस प्रकार चतुःप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक समझना चाहिये।
भगवतीसूत्र शतक २, उद्देशक १ में पुद्गल परमाणु की मुख्य आठ वर्गणाएँ मानी हैं(१) औदारिकवर्गणा स्थूल पुद्गलमय है। इस वर्गणा से पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और
त्रस जीवों के शरीर का निर्माण होता है। (२) वैक्रियवर्गणा—लघु, विराट्, हल्का, भारी, दृश्य, अदृश्य विभिन्न क्रियाएँ करने में सशक्त शरीर के
योग्य पुद्गलों का समूह। (३) आहारकवर्गणा—योगशक्तिजन्य शरीर के योग्य पुद्गलसमूह। (४) तैजसवर्गणा—तैजस शरीर के योग्य पुद्गलों का समूह ।
[१८]