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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र की पौरुषी उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की होती है, तथा दिवस और रात्रि की जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है।
९. जदा णं भंते ! उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति तदा णं कतिभागमुहुत्तभागेणं परिहायमाणी परिहायमाणी जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति ? जदा णं जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पारिसी भवति तदा णं कतिभागमुहत्तभागेणं परिवड्ढमाणी परिवड्ढमाणी उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवइ ?
सुदंसणा ! जदा णं उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति तदा णं बावीससयभागमुहुत्तभागेणं परिहायमाणी परिहायमाणी जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति। जदा वा जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति तदा णं बावीससयभागमुहत्तभागेणं परिवड्ढमाणी परिवड्ढमाणी उक्कोसिया अद्धपंचमुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति।
_ [९ प्र.] भगवन् ! जब दिवस की या रात्रि की पौरुषी उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की होती है, तब उस मुहूर्त का कितना भाग घटते-घटते जघन्य तीन मुहूर्त की दिवस और रात्रि की पौरुषी होती है ? और जब दिवस और रात्रि की पौरुषी जघन्य तीन मुहूर्त की होती है, तब मुहूर्त का कितना भाग बढ़ते-बढ़ते साढ़े चार मुहूर्त की पौरुषी होती है ? - [९ उ.] हे सुदर्शन ! जब दिवस और रात्रि की पौरुषी उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की होती है, तब मुहूर्त का एक सौ बाईसवाँ भाग घटते-घटते जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है, और जब जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है, तब मुहूर्त का एक सौ बाईसवाँ भाग बढ़ते-बढ़ते उत्कृष्ट पौरुषी साढ़े चार मुहूर्त की होती है।
१०. कदा णं भंते ! उक्कोसिआ अद्धपंचममुहत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति ? कदा वा जहन्निया तिमहत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति ?
सुदंसणा ! जदा णं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति, जहन्निया दुवालसमुहत्ता राती भवति तदा णं उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवति, जहनियातिमुहत्ता रातीय पोरिसी भवति। जदा वा उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति तदा णं उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता रातीए पोरिसी भवइ, जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ।
[१० प्र.] भगवन् ! दिवस और रात्रि की उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की पौरुषी कब होती है और जघन्य तीन मुहूर्त की पौरुषी कब होती है ?
[१० उ.] हे सुदर्शन ! जब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है तथा जघन्य बारह मुहूर्त की छोटी रात्रि होती है, तब साढ़े चार मुहूर्त की दिवस की उत्कृष्ट पौरुषी होती है और रात्रि की तीन मुहूर्त की सबसे छोटी पौरुषी होती है। जब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की बड़ी रात्रि होती है और जघन्य बारह मुहूर्त का छोटा दिन होता है, तब साढ़े चार मुहूर्त की उत्कृष्ट रात्रि-पौरुषी होती है और तीन मुहूर्त की जघन्य दिवस-पौरुषी होती है।
११. कदा णं भंते ! उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती