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________________ ६५ ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक - ११ [५] तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर ने सुदर्शन श्रेष्ठी और उस विशाल परिषद् को धर्मोपदेश दिया, यावत् वह आराधक हुआ । ६. तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ० उठाए उट्ठेति, उ० २ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वदासी [६] फिर वह सुदर्शन श्रेष्ठी श्रमण भगवान् महावीर से धर्मकथा सुन कर एवं हृदय में अवधारण करके अतीव हृष्ट-तुष्ट हुआ। उसने खड़े हो कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की तीन वार प्रदक्षिणा की और वन्दनानमस्कार करके पूछा— विवेचन — सुदर्शन श्रमणोपासक : भगवान् की सेवा में— प्रस्तुत ६ सूत्रों (१ से ६ तक) में वाणिज्यग्राम निवासी सुदर्शन श्रेष्ठी का परिचय, भगवान् का वाणिज्यंग्राम में पदार्पण, सुदर्शन श्रेष्ठी का विधिपूर्वक भगवान् की सेवा में गमन, धर्मश्रवण एवं प्रश्न पूछने की उत्सुकता आदि का वर्णन है । काल और उसके चार प्रकार ७. कतिविधे णं भंते ! काले पन्नत्ते ? • सुदंसणा ! चउव्विं काले पन्नत्ते, तं जहा—पमाणकाले १ अहाउनिव्वत्तिकाले २ मरणकाले ३ अद्धाकाले ४ । [७ प्र.] भगवन् ! काल कितने प्रकार का कहा गया है। [७ उ.] हे सुदर्शन ! काल चार प्रकार का कहा गया है । यथा - ( १ ) प्रमाणकाल, (२) यथायुर्निवृत्ति काल, (३) मरणकाल और (४) अद्धाकाल । विवेचन—काल के प्रकार — प्रस्तुत सप्तम सूत्र में काल के मुख्य चार भेदों की प्ररूपणा की गई है। इनके लक्षण. आगे बताए जाएँगे । प्रमाणकालप्ररूपणा ८. से किं तं पमाणकाले ? पमाणकाले दुविहे पन्नत्ते, तं जहा — दिवसप्पमाणकाले य १ रत्तिप्पमाणकाले य २ । चउपोरिसिए दिवसे, चउपोरिसिया राती भवति । उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति । हनिया तिमुहुत्ता दिवस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति । [८ प्र.] भगवन् ! प्रमाणकाल क्या है ? [८ उ.] सुदर्शन ! प्रमाणकाल दो प्रकार का कहा गया है, यथा——– दिवस - प्रमाणकाल और रात्रिप्रमाणकाल । चार पौरुषी (प्रहर) का दिवस होता है और चार पौरुषी (प्रहर) की रात्रि होती है । दिवस और रात्रि १. वियाहपण्णत्तिसुतं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ५३३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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