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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन–त्रिविध क्षेत्रलोक प्ररूपणा—प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. ३ से ६ तक) में ऊर्ध्वलोक, अधोलोक एवं मध्यलोक के रूप में त्रिविध क्षेत्रलोक के अनेक प्रभेद बतलाए गए हैं। लोक और अलोक के संस्थान की प्ररूपणा
७. अहेलोगखेत्तलोए णं भंते ! किंसंठिते पन्नत्ते ? गोयमा ! तप्पागारसंठिए पन्नत्ते। [७ प्र.] भगवन् ! अधोलोक-क्षेत्रलोक का किस प्रकार का संस्थान (आकार) कहा गया है ? [७ उ.] गौतम ! वह त्रपा (तिपाई) के आकार का कहा गया है। ८. तिरियलोगखेत्तलोए णं भंते ! किंसंठिए पन्नत्ते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिए पन्नत्ते। [८ प्र.] भगवन् ! तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक का संस्थान (आकार) किस प्रकार का कहा गया है ? [८ उ.] गौतम ! वह झालर के आकार का कहा गया है। ९. उड्डलोगखेत्तलोग पुच्छा। उड्डमुतिंगाकारसंठिए पन्नत्ते। [९ प्र.] भगवन् ! ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक किस प्रकार के संस्थान (आकार) का है ? [९ उ.] गौतम ! (वह) ऊर्ध्वमृदंग के आकार (संस्थान) का है। १०. लोए णं भंते ! किंसंठिए पन्नत्ते ?
गोयमा ! सुपइट्ठगसंठिए लोए पन्नत्ते, तं जहा हेट्ठा वित्थिणे, माझे संखित्ते जहा सत्तमसए पढमे उद्देसए (स०७ उ० १ सु० ५) जाव अंतं करेति।
[१० प्र.] भगवन् ! लोक का संस्थान (आकार) किस प्रकार का कहा गया है ?
[१० उ.] गौतम ! लोक सुप्रतिष्ठक (शराव—सकोरे) के आकार का है। यथा—वह नीचे विस्तीर्ण (चौड़ा) है, मध्य में संक्षिप्त (संकीर्ण-संकड़ा) है, इत्यादि सातवें शतक के प्रथम उद्देशक में कहे अनुसार जानना चाहिए। यावत्-उस लोक को उत्पन्न ज्ञान-दर्शन-धारक केवलज्ञानी जानते हैं, इसके पश्चात् वे सिद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं।
११. अलोए णं भंते ! किंसंठिए पन्नत्ते ? गोयमा ! झुसिरगोलसंठिए पन्नत्ते।
[११ प्र.] भगवन् ! अलोक का संस्थान (आकार) कैसा है ? . [११ उ.] गौतम ! अलोक का संस्थान पोले गोले के समान है।