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ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-१० क्षायिक, क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक तथा सान्निपातिक रूप से ६ प्रकार का है।'
३. खेत्तलोए णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे पन्नत्ते, जहा-अहेलोयखेत्तलोए १ तिरियलोयखेत्तलोए २ उड्डलोयखेत्तलोए ३। ' [३ प्र.] भगवन् ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है।
[३ उ.] गौतम ! (वह) तीन प्रकार का कहा गया है। यथा—१-अधोलोक-क्षेत्रलोक, २-तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक और ३- ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक।
४. अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविधे पन्नत्ते ?
गोयमा ! सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा—रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमपुढविअहेलोयखेत्तलोए।
[४ प्र.] भगवन् ! अधोलोक-क्षेत्रलोक कितने प्रकार है ?
[४ उ.] गौतम ! (वह) सात प्रकार का है यथा-रत्नप्रभापृथ्वी-अधोलोक-क्षेत्रलोक, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी-अधोलोक-क्षेत्रलोक।
५. तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?
गोयमा ! असंखेजतिविधे पन्नत्ते, तं जहा—जंबुद्दीवतिरियलोयखेत्तलोए जाव सयंभुरमणसमुद्दतिरियलोयखेत्तलोए।
[५ प्र.] भगवन् ! तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ?
[५ उ.] गौतम ! (वह) असंख्यात प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—जम्बूद्वीप-तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक, यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्र-तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक।
६. उड्डलोगखेत्तलोए णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?
गोयमा ! पण्णरसविधे पन्नते, तं जहा—सोहम्मकप्पउड्डलोगखेत्तलोए जाव अच्चुयउड्डलोग० गवेज्जविमाणउड्डलोग० अणुत्तरविमाण० इसिपब्भारपुढविउड्ढलोगखेत्तलोए।
[६ प्र.] भगवन् ! ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ?
[६ उ.] गौतम ! (वह) पन्द्रह प्रकार का कहा गया है। यथा—(१-१२) सौधर्मकल्प-ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक, यावत् अच्युतकल्प-ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक (१३) ग्रैवेयक विमान-ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक, (१४) अनुत्तरविमान-ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक, और (१५) ईषत्प्राग्भारपृथ्वी-ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक।
१. भगवती, अ. वृत्ति, पत्र ५२३