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उन्नीसवां शतक : उद्देशक-९
८११ [११ उ.] गौतम! पुद्गलकरण पांच प्रकार का कहा गया है। यथा-वर्णकरण, गन्धकरण, रसकरण, स्पर्शकरण और संस्थानकरण।
१२. वण्णकरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा—कालवण्णकरणे जाव सुक्किलवण्णकरणे। [१२ प्र.] भगवन् ! वर्णकरण कितने प्रकार का कहा गया है? [१२ उ.] गौतम! वर्णकरण पांच प्रकार का कहा गया है, यथा— कृष्णवर्णकरण यावत् शुक्लवर्णकरण ।
१३. एवं भेदो-गंधकरणे दुविधे, रसकरणे पंचविधे फासकरणे अट्ठविधे। __ [१३] इसी प्रकार पुद्गलकरण के वर्णादि-भेद कहने चाहिए यथा—दो प्रकार का गन्धकरण, पांच प्रकार का रसकरण एवं आठ प्रकार का स्पर्शकरण।
१४. संठाकरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते? गोयमा ! पंचविधे पनत्ते, तं जहा—परिमंडलसंठाणकरणे जाव आयतसंठाणकरणे। सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति जाव विहरति।
॥ एगूणवीसइमे सए : नवमो उद्देसओ समत्तो॥१९-९॥ [१४ प्र.] भगवन् ! संस्थानकरण कितने प्रकार का कहा गया है?
[१४ उ.] गौतम! वह पांच प्रकार का कहा गया है यथा—परिमण्डलसंस्थानकरण यावत्आयतसंस्थानकरण।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है', यों कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।
विवेचन—पुद्गलकरण के भेद-प्रभेदों का निरूपण—इन चार सूत्रों में पुद्गलों के २५ भेदों को करण रूप में निरूपित किया गया है। पुद्गल के भेद सुगम हैं।
॥ उन्नीसवाँ शतक : नौवाँ उद्देशक समाप्त।
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१. करणभेद-प्रभेददर्शिनीगाथाद्वय नवम-उद्देशक की समाप्ति के बाद मिलती है
दव्वे खेत्ते काले भवे य भावे सरीरकरणे या इंदियकरणे भासामणे कसाए समुग्धाए॥१॥ सन्ना लेसा दिट्ठि वेए पाणाइवायकरणे या पोग्गलकरणे वन्नेगंधेरसे य फासे य संठाणे॥२॥