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________________ उन्नीसवाँ शतक : उद्देशक - ९ भावकरण- - भावरूप करण, अथवा किसी भाव में, भाव से या भाव का करना भावकरण है। चौवीस दण्डकों में ये पांचों ही करण पाए जाते हैं । शरीरादिकरणों के भेद और चौवीस दण्डकों में उनकी प्ररूपणा ४. कतिविधे णं भंते! सरीरकरणे पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविधे सरीरकरणे पन्नत्ते, तं जहा — ओरालियसरीरकरणे जाव कम्मगसरीरकरणे । [४प्र.] भगवन्! शरीरकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [४ उ.] गौतम! शरीरकरण पांच प्रकार का कहा गया है, यथा— औदारिकशरीरकरण यावत् कार्मणशरीरकरण | ८०९ ५. एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति सरीराणि । [५] इसी प्रकार (नैरयिकों से लेकर) वैमानिकों तक जिसके जितने शरीर हों उसके उतने शरीरकरण कहने चाहिए । ६. कतिविधे णं भंते ! इंदियकरणे पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविधे इंदियकरणे पन्नत्ते, तं जहा— सोतिंदियकरणे जाव फासिंदियकरणे । [६ प्र.] भगवन् ! इन्द्रियकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [६ उ.] गौतम ! इन्द्रियकरण पांच प्रकार का कहा गया है, यथा— श्रोत्रेन्द्रियकरण यावत् स्पर्शेन्द्रियकरण । ७. एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति इंदियाई । [७] इसी प्रकार (नैरयिकों से लेकर) वैमानिकों तक जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों उसके उतने इन्द्रियकरण कहने चाहिए । ८. एवं एएणं कमेणं भासाकरणे चउव्विहे । मणकरणे चउव्विहे । कसायकरणे चउव्विहे । मुग्धाकरणे सत्तविधे । सण्णाकरणे चउव्विहे । लेस्साकरणे छव्विहे । दिट्ठिकरणे तिविधे । वेयकरणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा — इत्थिवेयकरणे पुरिसवेयकरणे नपुंसगवेयकरणे । एए सव्वे नेरइयाई दंडगा जाव वेमाणियाणं । जस्स जं अत्थि तं तस्स सव्वं भाणियव्वं । [८.] इसी प्रकार क्रम से चार प्रकार का भाषाकरण है। चार प्रकार का मन: करण है। चार प्रकार का कषायकरण है । सात प्रकार का समुद्घातकरण है। चार प्रकार का संज्ञाकरण है। छह प्रकार का लेश्याकरण है। तीन प्रकार का दृष्टिकरण है। तीन प्रकार का वेदकरण कहा गया है, - स्त्रीवेदकरण, पुरुषवेदकरण और नपुंसकवेदकरण । यथा— र नैरयिक आदि से लेकर वैमानिकों पर्यन्त चौवीस दण्डकों में इन सब करणों की प्ररूपणा करनी चाहिए, १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७७३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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