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उन्नीसवाँ शतक : उद्देशक-८ और सम्यग्मिथ्यादृष्टिनिर्वृत्ति।
३७. एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जतिविधा दिट्ठी।
[३७] इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त (दृष्टिनिर्वृत्ति कहनी चाहिए)। परन्तु, जिसके जो दृष्टि हो, (तदनुसार दृष्टिनिर्वृत्ति कहना चाहिए।)
३८. कतिविहा णं भंते ! नाणनिव्वत्ती पन्नत्ता ?
गोयमा ! पंचविहा नाणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा—आभिणिबोहियनाणनिव्वत्ती जाव केवलनाणनिव्वत्ती।
[३८ प्र.] भगवन् ! ज्ञाननिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ?
[३८ उ.] गौतम! ज्ञान-निर्वृत्ति पांच प्रकार की कही गई है, यथा—आभिनिबोधिक-ज्ञान-निवृत्ति, यावत् केवलज्ञान-निर्वृत्ति।
३९. एवं एगिदियवजं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति नाणा। . [३९] इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर जिसमें जितने ज्ञान हों, तदनुसार उसमें उतनी ज्ञाननिर्वृत्ति (कहनी चाहिए।)
४०. कतिविधा णं भंते ! अन्नाणनिव्वत्ती पन्नत्ता ?
गोयमा ! तिविहा अन्नाणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा मइअन्नाणनिव्वत्ती सुयअन्नाणनिव्वत्ती विभंगनाणनिव्वत्ती।
[४० प्र.] भगवन् ! अज्ञाननिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ?
[४० उ.] गौतम ! अज्ञाननिर्वृत्ति तीन प्रकार की कही गई है, यथा—मति-अज्ञाननिर्वृत्ति, श्रुत-अज्ञाननिर्वृत्ति और विभंगज्ञाननिर्वृत्ति।
४१. एवं जस्स जति अन्नाणा जाव वेमाणियाणं। [४१] इस प्रकार वैमानिकों पर्यन्त, जिसके जितने अज्ञान हों, (तदनुसार अज्ञाननिर्वृत्ति कहनी चाहिए।) ४२. कतिविधा णं भंते ! जोगनिव्वत्ती पन्नत्ता ?
गोयमा ! तिविहा जोगनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा—मणजोगनिव्वत्ती, वइजोगनिव्वत्ती, कायजोगनिव्वत्ती।
[४२ प्र.] भगवन् ! योगनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ?
[४२ उ.] गौतम! योगनिर्वृत्ति तीन प्रकार की कही गई है, यथा—मनोयोगनिर्वृत्ति, वचनयोगनिर्वृत्ति और काययोगनिर्वृत्ति।