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________________ ७९७ उन्नीसवाँ शतक : उद्देशक-७ ६. केवतिया णं भंते ! जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा. पुच्छा ? गोयमा ! असंखेजा जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता। [६ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के विमानावास कितने लाख कहे गए हैं ? [६ उ.] गौतम! (उनके विमानावास) असंख्येय लाख कहे गए हैं। . ७. ते णं भंते ! किंमया पन्नत्ता? गोयमा ! सव्वफालिहामया अच्छा, सेसं तं चेव। [७ प्र.] भगवन् ! वे विमानावास किस वस्तु से निर्मित हैं ? [७ उ.] गौतम! वे विमानावास सर्वस्फटिकरत्नमय हैं और स्वच्छ हैं; शेष सब वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए। ८. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवतिया विमाणावाससयसहस्सा पन्नत्ता ? गोयमा! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा। [८ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प में कितने लाख विमानावास कहे गए हैं ? [८ उ.] गौतम! उसमें बत्तीस लाख विमानावास कहे गए हैं। ९. ते णं भंते ! किंमया पन्नत्ता? गोयमा ! सव्वरयणामया अच्छा, सेसं तं चेव। [९ प्र.] भगवन् ! वे विमानावास किस वस्तु के बने हुए हैं ? [९ उ.] गौतम! वे सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। १०. एवं जाव अणुत्तरविमाणा, नवरं जाणियव्वा जत्तिया भवणा विमाणा वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । ॥एगूणवीसइमे सए : सत्तमो उद्देसओ समत्तो॥१९-७॥ ___ [१०] इसी प्रकार (का वर्णन ईशानकल्प से लेकर) अनुत्तरविमान तक कहना चाहिए। विशेष यह है कि जहाँ जितने भवन या विमान (शास्त्र-निर्दिष्ट) हों, (उतने कहने चाहिए।) 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन—देवों के भवनावासों और विमानावासों की संख्यादि—प्रस्तुत १० सूत्रों (सू. १ से १० तक) में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के भवनावास, नगरावास एवं विमानावासों की संख्या कितनी-कितनी है? किस वस्तु से वे निर्मित हैं तथा वे कैसे हैं? इत्यादि सब वर्णन इस उद्देशक में किया गया है।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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