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छट्ठो उद्देसओ : 'दीव'
छठा उद्देशक : द्वीप ( -समुद्र-वक्तव्यता) जीवाभिगमसूत्र-निर्दिष्ट-द्वीप-समुद्र-सम्बन्धी वक्तव्यता
१. कहि णं भंते ! दीव-समुद्दा ?, केवतिया णं भंते ! दीव-समुद्दा ?, किसंठिया णं भंते ! दीवसमुद्दा ?
एवं जहा जीवाभिगमे दीव-समुदुद्देसो सो चेव इह वि जोतिसमंडिउद्देसगवज्जो भाणियव्वो जाव परिणामो जीवउववाओ जाव अणंतखुत्तो। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति.।
॥एगूणवीसइमे सए : छट्ठो उद्देसओ समत्तो॥१९-६॥ [१ प्र.] भगवन् ! द्वीप और समुद्र कहाँ हैं ? भगवन् ! द्वीप और समुद्र कितने हैं ? भगवन् ! द्वीप-समुद्रों का आकार (संस्थान) कैसा कहा गया है ?
[१ उ.] (गौतम!) यहाँ जीवाभिगमसूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति में, ज्योतिष्क-मण्डित उद्देशक को छोड़कर, द्वीप-समुद्र-उद्देशक (में उल्लिखित वर्णन) यावत् परिणाम, जीवों का उत्पाद और.यावत् अनन्त बार तक कहना चाहिए।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन द्वीप-समुद्र कहाँ, कितने और किस आकार के ?—प्रस्तुत उद्देशक में द्वीप-समुद्र सम्बन्धी वक्तव्यता जीवाभिगमसूत्र तृतीय प्रतिपत्ति के अतिदेशपूर्वक प्रतिपादन की गई है। जीवाभिगम में द्वीपसमुद्रोद्देशक में वर्णित 'ज्योतिष्कमण्डित' प्रकरण को छोड़ देना चाहिए तथा परिणाम और उत्पाद तक का जो वर्णन द्वीप-समुद्र से सम्बन्धित है, वही यहाँ जानना चाहिए।
द्वीप-समुद्रों का संक्षिप्त परिचय स्वयम्भूरमणसमुद्र तक असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। जम्बूद्वीप . इनमें से विशिष्ट द्वीप है, जिसका संस्थान (आकार) चन्द्रमा या थाली के समान गोल है। शेष सब द्वीप-समुद्रों का संस्थान चूड़ी के समान वलयाकार गोल है। क्योंकि ये एक दूसरे को चारों ओर से घेरे हुए हैं। इनमें जीव पहले अनेक बार या अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं।