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________________ ७९२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र महाकर्मादि वाले होते हैं। वेदना : दो प्रकार तथा उनका चौवीस दण्डकों में निरूपण ६. कतिविधा णं भंते ! वेयणा पन्नत्ता ! गोयमा ! दुविहा वेयणा पन्नत्ता, तं जहा—निदा य अनिदा य। [६ प्र.] भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ? [६ उ.] गौतम! वेदना दो प्रकार की कही गई है, यथा—निदा वेदना और अनिदा वेदना। ७. नेरइया णं भंते ! किं निदायं वेयणं वेएंति, अनिदायं ? जहा पन्नवणाए जाव वेमाणिय त्ति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्तिः । ॥एगूणवीसइमे सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो॥१९-५॥ [७ प्र.] भगवन् ! नैरयिक निदा वेदना वेदते हैं या अनिदा वेदना वेदते हैं ? [७ उ.] गौतम! (इसका उत्तर) प्रज्ञापनासूत्र के (पैंतीसवें पद में उल्लिखित कथन) के अनुसार वैमानिकों तक जानना चाहिए। 'हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-नैरयिकादि में दो प्रकार की वेदना—प्रस्तुत दो सूत्रों में वेदना के दो प्रकार तथा नैरयिकादि में प्रज्ञापनासूत्र के अतिदेशपूर्वक उनकी प्ररूपणा की गई है। निदा और अनिदा वेदना—ये दोनों शास्त्रीय पारिभाषिक शब्द हैं। निदा के मुख्य अर्थ यहाँ वृत्तिकार ने किये हैं—(१) निदा-ज्ञान, सम्यगविवेक आभोग, उपयोग तथा (२) निदा अर्थात्—जीव का नियत दान यानी शोधन (शुद्धि)। इन दोनों अर्थ वाली निदा से युक्त वेदना भी निदा वेदना है। अर्थात् सम्यग्विवेकपूर्वक, ज्ञानपूर्वक या उपयोगपूर्वक (आभोगपूर्वक) वेदी जाने वाली वेदना को निदा वेदना कहते हैं। यही वेदना निश्चित रूप से जीव की शुद्धि करने वाली है। इसके विपरीत अज्ञानपूर्वक अनाभोग—(अनजानपन में) वेदी जाने वाली वेदना को अनिदा वेदना कहते हैं। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७६९ से नूणं भंते ! चरमेहितो असुरकुमारेहिंतो परमा असुरकुमारा अप्पकम्मतरा चेव अप्पकिरियतरा चेवेत्यादि। २. (क) भगवती. अ. वृत्ति पत्र ७६९ (ख) भगवती. खंड ४ (गुजराती अनुवाद) (पं. भगवानदास दोशी) पृ. ८९
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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