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ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक - ९
वर्ण से अत्यन्त श्वेत है, अतिरम्य है, उसके ऊपर वाले योजन पर लोक का अन्त होता है । उक्त योजन के ऊपर वाले एक गाऊ (गव्यूति) के उपरितन १६ भाग में सिद्ध निवास करते हैं । इसके पश्चात् सारी सिद्धगण्डिका समस्त दुःखों का छेदन करके जन्म-जरा-मरण के बन्धनों से विमुक्त, सिद्ध, शाश्वत एवं अव्याबाध सुख अनुभव करते हैं; यहाँ तक कहना चाहिये ।
१.
॥ ग्यारहवाँ शतक : नौवाँ उद्देशक समाप्त ॥
(क) भगवती, अ. वृत्ति, पत्र ५२० -५२१ (ख) औपपातिकसूत्र, सू. ४३, पत्र ११२ ( आगमोदय.)