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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र लोच करके भगवान् से निर्ग्रन्थ-प्रव्रज्याग्रहण एवं (४) ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप की आराधना से मुक्तिप्राप्ति। सिद्ध होने वाले जीवों का संहननादिनिरूपण ३३. भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वं० २ एवं वयासी-जीवा णं भंते ! सिज्झमाणा कयरम्मि संघयणे सिझंति ? । गोयमा ! वइरोसभणारायसंघयणे सिझंति एवं जहेव उववातिए तहेव 'संघयणं संठाणं उच्चत्तं आउयं च परिवसणा' एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियव्वा जाव 'अव्वाबाहं सोक्खं अणुहुंती सासयं सिद्धा।' सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥एक्कारसमे सए नवमो उद्देसो समत्तो ॥११.९॥ [३३ प्र.] श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करके भगवान् गौतम ने इस प्रकार पूछा 'भगवन् ! सिद्ध होने वाले जीव किस संहनन से सिद्ध होते हैं ?' [३३ उ.] गौतम ! वे वज्रऋषभनाराचसंहनन से सिद्ध होते हैं; इत्यादि औपपातिकसूत्र के अनुसार संहनन, संस्थान, उच्चत्व (अवगाहना), आयुष्य, परिवसन (निवास), इस प्रकार सम्पूर्ण सिद्धिगण्डिका - 'सिद्ध जीव अव्याबाध शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं', यहाँ तक कहना चाहिए। ___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन-सिद्धों के योग्य संहननादि निरूपण-नौंवे उद्देशक के इस अन्तिम सूत्र में सिद्ध होने वाले जीवों के योग्य संहनन का प्रतिपादन करके संस्थान, अवगाहना, आयुष्य और परिवसन आदि के लिए आपैपातिकसूत्र का अतिदेश किया गया है। सिद्धों के संहनन आदि इस प्रकार हैं संहनन—वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले सिद्ध होते हैं। संस्थान-छह प्रकार के संस्थानों में से किसी एक संस्थान से सिद्ध होते हैं। उच्चत्व—सिद्धों की (तीर्थंकरों की अपेक्षा) अवगाहना जघन्य सात रत्नि (मुंडहाथ) प्रमाण और उत्कृष्ट ५०० धनुष होती है। ___ आयुष्य—सिद्ध होने वाले जीव का आयुष्य जघन्य कुछ अधिक ८ वर्ष का, उत्कृष्ट पूर्वकोटिप्रमाण होता है। परिवसना (निवास)–सिद्ध होने वाले जीव सर्वार्थसिद्ध महाविमान के ऊपर की स्तूपिका के अग्रभाग से १२ योजन ऊपर जाने के बाद ईषत्-प्रारभारा नाम की पृथ्वी है, जो ४५ लाख योजन लम्बी-चौड़ी है, १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५२५-५२६
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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