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उन्नीसवाँ शतक : उद्देशक-३
७८१ सरीरा से एगे सुहमे आउसरीरे।असंखेजाणं सुहमआउकाइयसरीराणं जावतिया सरीरा से एगे पुढविसरीरे। असंखेज्जाणं सुहमपुढविकाइयाणंजावतिया सरीरा से एगे बायरवाउसरीरे असंखेज्जाणं बादरवाउकाइयाणं जावतिया सरीरा से एगे बादरतेउसरीरे। असंखेज्जाणं बादरतेउकाइयाणं जावतिया सरीरा से एगे बायरआउसरीरे। असंखेज्जाणं बादरआउकाइयाणं जावइया सरीरा से एगे बादरपुढविसरीरे, एमहालए णं गोयमा ! पुढविसरीरे पन्नत्ते।। - [३१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों का शरीर कितना बड़ा (महाकाय) कहा गया है।
[३१ उ.] गौतम! अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म वायुकाय का शरीर होता है। असंख्यात सूक्ष्म वायुकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म अग्निकाय का शरीर होता है। असंख्य सूक्ष्म अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म अप्काय का शरीर होता है। असंख्य सूक्ष्म अप्काय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सक्ष्म पृथ्वीकाय का शरीर होता है, असंख्य सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर वायुकाप का शरीर होता है। असंख्य बादर वायुकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर अग्निकाय का शरीर होता है। असंख्य बादर अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर अप्काय शरीर होता है। असंख्य बादर अप्काय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर पृथ्वीकाय का शरीर होता है। हे गौतम ! (अप्काय आदि अन्य कायों की अपेक्षा) इतना बड़ा (महाकाय) पृथ्वीकाय का शरीर होता है।
विवेचन—पृथ्वीकाय के शरीर की महाकायता का माप-प्रस्तुत सू. ३१ में पृथ्वीकाय का शरीर दूसरे अप्कायादि की अपेक्षा कितना बड़ा है ? इसका सदृष्टान्त निरूपण किया गया है। मापकयंत्र-१-असंख्य सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के शरीर—एक सूक्ष्म वायुशरीर,
२-असंख्य सूक्ष्म वायुकायिक-शरीर—एक सूक्ष्म अग्निशरीर, ३-असंख्य सूक्ष्म अग्निशरीर—एक सूक्ष्म अप्काय शरीर, ४-असंख्य सूक्ष्म अप्कायशरीर—एक सूक्ष्म पृथ्वीशरीर, ५-असंख्य सूक्ष्म पृथ्वीशरीर-एक बादर वायुशरीर, ६-असंख्य बादर वायुशरीर—एक बादर अग्निशरीर, ७-असंख्य बादर अग्निशरीर—एक बादर अप्कायशरीर,
८-असंख्य बादर अप्कायशरीर—एक बादर पृथ्वीशरीर। पृथ्वीकाय के शरीर की अवगाहना
३२. पुढविकायस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहानामए रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स वण्णगपेसिया सिया तरुणी बलवं जुगवं