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________________ बीओ उद्देसओ : 'गब्भ' प्रथम उद्देशक : 'गर्भ' एक लेश्या वाले मनुष्य से दूसरी लेश्यावाले गर्भ की उत्पत्ति विषयक निरूपण १. कति णं भंते! लेस्साओ पन्नत्ताओ ? एवं जहा पन्नवणाए गब्भुद्देसो सो चेव निरवसेसो भाणियव्वो । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० । ॥ गूणवीसइमे सए : बीओ उद्देसओ समत्तो ॥ १९-२॥ [१ प्र.] भगवन् ! लेश्याएं कितनी कही गई हैं ? [२ उ.] इसके विषय में प्रज्ञापनासूत्र के सत्तरहवें पद का छठा समग्र गर्भोद्देशक कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । विवेचन—– किस लेश्या वाला, किस लेश्या वाले गर्भ को उत्पन्न करता है ? – प्रज्ञापनानिर्दिष्ट चिन्तन — प्रस्तुत उद्देशक में बताया गया है कि कृष्णलेश्या वाला जीव कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले यावत् शुक्लेश्या वाले गर्भ को उत्पन्न करता है, इसी तरह नीललेश्या वाला जीव कृष्णादिलेश्या वाले गर्भ को उत्पन्न करता है। इसी प्रकार कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। इसी तरह कृष्णलेश्या वाला मनुष्य कृष्णलेश्या वाली स्त्री से कृष्णलेश्या वाले गर्भ को उत्पन्न करता है। इस प्रकार समस्त कर्मभूमिक एवं अकर्मभूमिक मनुष्यों के सम्बन्ध में जानना चाहिए। केवल इतना ही विशेष है कि अकर्मभूमिक मनुष्य के प्रथम की चार लेश्याएँ होने से चार का ही कथन करना चाहिए।' ॥ उन्नीसवाँ शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ १. (क) इसके विस्तृत विवरण के लिए देखिये- प्रज्ञापना. पद १७, उ. ५, पृ. ३७३ (ख) श्रीमद् भगवतीसूत्र, खण्ड ४ (गुज. अनु.) (पं. भगवानदास दोशी) पृ. ८०
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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