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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मझमझेणं निग्गच्छइ, नि० २ जेणेव दूतिपलासए चेतिए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति उवा० २ समणस्स भगवतो महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वदासि—जत्ता ते भंते ! जवणिज्जं अव्वाबाहं फासुयविहारं ?
सोमिला ! जत्ता वि मे, जवणिज्जं पि मे, अव्वाबाहं पि मे, फासुयविहारं पि मे।
[१७] जब सोमिल ब्राह्मण को भगवान् महावीर स्वामी के आगमन की बात मालूम हुई तो उसके मन में इस प्रकार का यावत् विचार उत्पन्न हुआ पूर्वानुपूर्वी (अनुक्रम) से विचरण करते हुए तथा ग्रामानुग्राम सुखपूर्वक पदार्पण करते हुए ज्ञातपुत्र श्रमण (महावीर) यावत् यहाँ आए हैं, यावत् द्युतिपलाश उद्यान में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके विराजमान हैं। अतः मैं श्रमण ज्ञातपुत्र के पास जाऊँ और वहाँ जाकर इन और ऐसे अर्थ (बातें) यावत् व्याकरण (प्रश्नों के उत्तर) उनसे पूछ् । यदि वे मेरे इन और ऐसे अर्थों यावत् प्रश्नों का यथार्थ उत्तर देंगे तो मैं उन्हें वन्दन-नमस्कार करूंगा, यावत् उनकी पर्युपासना करूंगा। यदि वे मेरे इन और ऐसे अर्थों और प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकेंगे तो मैं उन्हें इन्हीं अर्थों और उत्तरों से निरुत्तर कर दूंगा।' ऐसा विचार किया। तत्पश्चात् उसने स्नान किया, यावत् शरीर को वस्त्र और सभी अलंकारों से विभूषित किया। फिर वह अपने घर से निकला और अपने एक सौ शिष्यों के साथ (घिरा हुआ) पैदल चल कर वाणिज्यग्राम नगर के मध्य में होकर जहाँ द्युतिपलाश-उद्यान ! था और जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके पास आया और श्रमण भगवान् महावीर से न अतिदूर, न अतिनिकट खड़े होकर उसने उन्हें इस प्रकार पूछा
[१७ प्र.] भंते ! आपके (धर्म में) यात्रा, यापनीय, अव्याबाध और प्रासुकविहार है ? [१७ उ.] सोमिल! मेरे (धर्म में) यात्रा भी है, यापनीय भी है, अव्याबाध भी है और प्रासुकविहार भी है। १८. किं ते भंते ! जत्ता ? सोमिला ! जं मे तव-नियम-संजम-सज्झाय-झाणावस्सगमादीएसु जोएसु जयणा से त्तं जत्ता। [१८ प्र.] भंते! आपके यहाँ यात्रा कैसी है?
[१८ उ.] सोमिल! तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान और आवश्यक आदि योगों में जो मेरी यतना (प्रवृत्ति) है, वह मेरी यात्रा है।
१९. किं ते भंते ! जवणिज्जं ? सोमिला ! जवणिज्जे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—इंदियजवणिज्जे य नोइंदियजवणिज्जे य। [१९ प्र.] भगवन् ! आपके यापनीय क्या है?
[१९ उ.] सोमिल ! यापनीय दो प्रकार का कहा गया है । वह इस प्रकार है-(१) इन्द्रिय-यापनीय और (२) नो-इन्द्रिययापनीय। .
२०. से किं तं इंदियजवणिज्जे ?