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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन–प्रणिधान : स्वरूप, प्रकार एवं जीवों में प्रणिधान की प्ररूपणा—मन, वचन और काययोग को किसी भी एक पदार्थ या निश्चित विषय-आलम्बन में स्थिर करना प्रणिधान है। वह तीन प्रकार का है। एकेन्द्रिय जीवों में एक कायप्रणिधान और विकलेन्द्रिय जीवों में दो वचनप्रणिधान और कायप्रणिधान तथा पंचेन्द्रिय जीवों में तीनों-मन-वचन-कायप्रणिधान पाए जाते हैं। दुष्प्रणिधान एवं सुप्रणिधान के तीन-तीन भेद तथा नैरयिकादि में दुष्प्रणिधान-सुप्रणिधानप्ररूपणा
२०. कतिविधे णं भंते ! दुप्पणिहाणे पन्नत्ते ?
गोयमा ! तिविहे दुप्पणिहाणे पन्नत्ते, तं जहा—मणदुप्पणिहाणे जहेव पणिहाणेणं दंडगो भणितो तहेव दुप्पणिहाणेण वि भाणियव्वो। _ [२० प्र.] भगवन् ! दुष्प्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है?
[२० उ.] गौतम! दुष्प्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है यथा—मनो-दुष्प्रणिधान, वचन-दुष्प्रणिधान और काय-दुष्प्रणिधान। जिस प्रकार प्रणिधान के विषय में दण्डक कहा गया है, उसी प्रकार दुष्प्रणिधान के विषय में भी कहना चाहिए।
२१. कतिविधे णं भंते ! सुप्पणिहाणे पन्नत्ते ?
गोयमा ! तिविधे सुप्पणिहाणे पन्नत्ते, तं जहा—मणसुप्पणिहाणे वतिंसुप्पणिहाणे कायसुष्पणिहाणे। । [२१ प्र.] भगवन् ! सुप्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है?
[२१ उ.] गौतम! सुप्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है, यथा—मनःसुप्रणिधान, वचनसुप्रणिधान और कायसुप्रणिधान।
२२. मणुस्साणं भंते ! कतिविधे सुप्पणिहाणे पन्नत्ते ? एवं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरति। [२२ प्र.] भगवन् ! मनुष्यों के कितने प्रकार का सुप्रणिधान कहा गया है? [२२ उ.] गौतम! मनुष्यों के तीनों प्रकार का सुप्रणिधान होता है।
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७५०
प्रकर्षेण नियते आलम्बने धानं-धरणं मनःप्रभृतेरिति प्रणिधानम् । (ख) भगवती. चतुर्थ खण्ड (पं. भगवानदास दोशी), प्र. ६५