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________________ ७१६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [४] इसी प्रकार इसी अभिलाप द्वारा, मजीठ लाल है, हल्दी पीली है, शंख शुक्ल (सफेद) है, कुष्ठ (कुट्ठ)—पटवास (कपड़े में सुगन्ध देने की पत्ती) सुरभिगन्ध (सुगन्ध) वाला है, मृतकशरीर (शव) दुर्गन्धित है, नीम (निम्ब) तिक्त (कड़वा है, सूंठ कटुक (तीखी-चरपरी) है, कपित्थ (कवीठ) कसैला है, इमली खट्टी है; खांड (शक्कर) मधुर है; वज्र कर्कश (कठोर) है, नवनीत (मक्खन) मृदु (कोमल) है, लोह भारी है; उलुकपत्र (बोरड़ी का पत्ता) हल्का है, हिम (बर्फ) ठण्डा है, अग्निकाय उष्ण (गर्म) है, तेल स्निग्ध (चिकना) है, किन्तु नैश्चयिनक नय से इन सब में पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श हैं। ५. छारिया णं भंते. पुच्छा। गोयमा ! एत्थ दो नया भवंति, तं जहा—नेच्छइयनए य वावहारियनए य। वावहारियनयस्स लुक्खा छारिया, नेच्छइनयस्स पंचवण्णा जाव अट्ठ फासा पन्नत्ता। [५ प्र.] भगवन् ! राख कितने वर्ण वाली है?, इत्यादि प्रश्न। __ [५ उ.] गौतम! व्यावहारिक नय से राख रूक्ष स्पर्श वाली है और नैश्चयिक नय से राख पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श वाली है। विवेचन–प्रत्येक वस्तु के वर्णादि का व्यावहारिक एवं नैश्चयिक नय की दृष्टि से निरूपणव्यवहारनय लोकव्यवहार का अनुसरण करता है । वस्तुत: व्यवहारनय व्यवहारमात्र को बताने वाला है। वस्तु के अनेक अंशों में से उतने ही अंश को ग्रहण करता है, जितने अंश से व्यवहार चलाया जा सकता है, शेष अन्य अंशों के प्रति वह उपेक्षाभाव रखता है। नैश्चयिकनय वस्तु के मूलभूत स्वभाव को स्वीकार करता है । इसी दृष्टि से यहाँ गुड़, भ्रमर, शुकपिच्छ, राख तथा मजीठ, हल्दी आदि के विषय में दोनों नयों की अपेक्षा से उत्तर दिया गया है। उदाहरणार्थ भौंरा और हल्दी व्यवहारनय की दृष्टि से काला और पीली है किन्तु निश्चयनय की दृष्टि से उनमें पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श हैं। ____ कठिन शब्दार्थ—फाणियगुले—गीला गुड़-राब। सुयपिच्छे—तोते की पांख। छारिया—राख। गोड्डे-गौल्य अर्थात्—गौल्य (मधुर) रस से युक्त । उलुयपत्ते—दो रूप दो अर्थ—(१) उलुकपत्र—बेर के पत्ते (२) उलूकपुत्र—उल्लू के पत्र यानी पंख।' परमाणु पुद्गल एवं द्विप्रदेशी स्कन्ध आदि में वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श निरूपण ६. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कइवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते ? गोयमा ! एगवण्णे एगगंधे एगरसे दुफासे पन्नत्ते। [६ प्र.] भगवन्! परमाणुपुद्गल कितने वर्ण वाला यावत् कितने स्पर्शवाला कहा गया है ? १. भगवतीसूत्र (प्रमेयचन्द्रिका टीका), भा. १३, पृ.६८-७१ २. (क) भगवतीसूत्र—विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. ६, पृ. २७०९ (ख) भगवतीसूत्र (प्रमेयचन्द्रिका टीका) भा. १३, पृ.७०
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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