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________________ अठारहवाँ शतक : उद्देशक - ५ ७११ चौवीस दण्डकों में स्वदण्डकवर्ती दो जीवों में महाकर्मत्व- अल्पकर्मत्वादि के कारणों का निरूपण ५. दो भंते ! नेरइया एगंसि नेरतियावासंसि नेरतियत्ताए उववन्ना । तत्थ णं एगे नेरइए महाकम्मतराए चेव जाव महावेदणतराए चेव, एगे नेरइए अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेदणतराए चेव, से कहमेयं भंते! एवं ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा — मायिमिच्छद्दिट्ठिउववन्नगा य, अमायिसम्मद्दिट्ठिउववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायिमिच्छद्दिट्ठिउववन्नए नेरतिए से णं महाकम्मतराए चेव जाव महावेदणतराए चेव, तत्थ णं जे से अमायिसम्मद्दिट्ठिउयवडववन्नए नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेदणतराए चेव । [५ प्र.] भगवन्! दो नैरयिक एक ही नरकवास में नैरयिकरूप से उत्पन्न हुए। उनमें से एक नैरयिक महाकर्म वाला यावत् महावेदना वाला और एक नैरयिक अल्पकर्मवाला यावत् अल्पवेदना वाला होता है; तो भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ? [५ उ.] गौतम! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा— मायिमिथ्यादृष्टि - उपपन्नक और अमायिसम्यग्दृष्टि-उपपन्नक । इनमें से जो मायिमिथ्यादृष्टि - उपपन्नक नैरयिक है वह महाकर्म वाला यावत् महावेदना वाला है, और उनमें जो अमायिसम्यग्दृष्टि-उपपन्नक नैरयिक है, वह अल्पकर्म वाला यावत् अल्पवेदना होता है। ६. दो भंते ! असुरकुमारा० ? एवं चेव । [ ६ प्र.] भगवन् ! दो असुरकुमारों के महाकर्म- अल्पकर्मादि विषयक प्रश्न ? [६ उ. ] हे गौतम! यहाँ भी उसी प्रकार (पूर्ववत्) समझना चाहिए। ७. एवं एगिंदिय - विगलिंदियवज्जा जाव वेमाणिया । [७] इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक समझना चाहिए। विवेचन—नैरयिक से वैमानिक तक महाकर्मादि एवं अल्पकर्मादि का कारण — महाकर्म आदि चार पद हैं। यथा— महाकर्म, महाक्रिया, महा-आश्रव और महावेदना । इन चारों की व्याख्या पहले की जा चुकी है। महाकर्मता आदि का कारण मायिमिथ्यादृष्टित्व है, और अल्पकर्मता आदि का कारण अमायिसम्यग्दृष्टित्व है। एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों में इस प्रकार का अन्तर नहीं होता, क्योंकि उनमें एकमात्र मायिमिथ्यादृष्टि ही होते हैं, अमायिसम्यग्दृष्टि नहीं। इसलिए यहाँ एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर सभी दण्डकों में दो दो प्रकार के जीव बताए हैं । १. भगवती विवेचन भा. ६ (पं. घेवरचन्दजी) पृ. २७०३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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