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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गंगदत्त श्रेष्ठी बने हुए थे। इन दोनों में प्राय: ईर्ष्याभाव रहता था। दोनों ने तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के पास दीक्षा अंगीकार की थी। किन्तु श्रमणत्व की साधना में तारतम्य होने से गंगदत्त का जीव सातवें महाशुक्र देवलोक में उत्पन्न हुआ, जबकि कार्तिक सेठ का जीव शक्रेन्द्र बना।'
कठिन शब्दार्थ—उववायसभाए-उपपात सभा (देवों के उत्पन्न होने के सभागार) में। देवसयणिजंसि—देवशय्या में (जहाँ देव उत्पन्न होते हैं)। पाउणइ-पालन करता है। अहुणोववन्नेतत्काल उत्पन्न हुआ है। ॥ अठारहवाँ शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त॥
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१. भगवतीसूत्र. भा. ६ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. २६७४ २. वही, पृ. २६७३