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________________ ६८२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र परिचय देते हुए कहा कि वह हस्तिनापुर निवासी था, वह आढ्य, दीप्त, वित्त (विज्ञात या विख्यात) यावत् अपराभूत यानी किसी से दबने वाला नहीं था। वह नगर के १००८ व्यापारियों में अग्रगण्य था, मेढी (केन्द्रीय स्तम्भ), प्रमाण, आधार और आलम्बन यावत् चक्षुरूप (नेता) था। 'कजेसु' इत्यादि शब्दों का भावार्थ-कज्जेसु–गृहनिर्माण तथा स्वजनसम्मान आदि कार्यों के, कारणेसु-अभीष्ट बातों के कारणों में, कृषि, पशुपालन, वाणिज्यादि अभीष्ट वस्तुओं के विषय में, कोडुंबेसुकौटुम्बिक मनुष्यों के विषय में। राजप्रश्नीय पाठ का स्पष्टीकरण मंतेसु-मंत्रणाएँ करने या विचार-विमर्श करने में। गुझेसुलजायोग्य गुप्त या गोपनीय बातों के विषय में। रहस्सेसु–सामाजिक या कौटुम्बिक रहस्यमय या एकान्त के योग्य बातों में । ववहारेसु—पारस्परिक व्यवहारों में, लेनदेन में। निच्छएसुनिश्चयों में कई बातों का निर्णय करने में। __ आपुच्छणिजे—एक बार पूछने योग्य । पडिपुच्छणिज्जे-बार-बार पूछने योग्य। मेढ़ी : आशय जिस प्रकार भूसे में से धान निकालने के लिए खलिहान के बीच में एक स्तम्भ गाड़ा जाता है, जिसको केन्द्र में रखकर उसके चारों ओर धान्य को गाहने के लिए बैल चक्कर लगाते हैं; इसी प्रकार जिसको केन्द्र में रखकर सभी कुटुम्बीजन और व्यापारीगण विवेचना करते थे, विचारविमर्श करते थे। पमाणं—प्रत्यक्षादि प्रमाणवत् उसकी बात अविरुद्ध (प्रमाणित) होती थी। इसलिए उसको प्रमाणभूत मानकर उचित कार्य में प्रवृत्ति या अनुचित से निवृत्ति की जाती थी। आहारे:आधार—जैसे आधार, आधेय का उपकारक होता है, वैसे ही वह आधार लेने वाले लोगों के सर्व कार्यों में उपकारी होता था। आलंबणं-आलम्बन : सहारा—जैसे रस्सी आदि गिरते हुए के लिए आलम्बन (सहारा) होती है, वैसे ही वह विपत्ति में या पतन के गड्ढे में पड़ते हुए के लिए आलम्बन था। चक्खू : चक्षु–नेत्रवत् पथ-प्रदर्शक। जैसे नेत्र विविध कार्यों को या मार्ग को दिखाते हैं, वैसे ही वह प्रवृत्ति-निवृत्ति रूप विविध कार्यों में पथ-प्रदर्शक था। चक्खुभूए इत्यादि : अभिप्राय—मेढी आदि पदों के आगे लगाया हुआ 'भूत' शब्द उपमार्थक है। यानी मेढ़ी के तुल्य यावत् चक्षु के समान।' णेगमट्ठसहस्सस्स---एक हजार आठ नैगमों अर्थात् वणिकों का। मुनिसुव्रतस्वामी से धर्मकथा-श्रवण और प्रव्रज्या ग्रहण की इच्छा ३.[२] तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुव्वये अरहा आदिगरे जहा सोलसमसए ( स. १६ उ. ५ १. भगवतीसूत्र . अ. वृत्ति, पत्र ७३९
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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