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________________ सत्तरहवाँ शतक : उद्देशक-१ ६१३ निव्वत्तिए ते वि णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। जे वि य से जीवा अहे वीससाए पच्चोवतमाणस्स उवग्गहे वटंति ते वि णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। [९ प्र.] भगवन् ! यदि (उस पुरुष के द्वारा ताड़ फल को हिलाते और नीचे गिराते समय), वह ताड़फल अपने भार (वजन) के कारण यावत् (स्वयं) नीचे गिरता है और उस ताड़फल के द्वारा जो जीव, यावत् जीवन से रहित हो जाते हैं, तो उससे उस (फल तोड़ने वाले) पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं? [९ उ.] गौतम! जब तक वह पुरुष उस फल को तोड़ता है, और वह ताड़फल अपने भार के कारण नीचे गिरता हुआ जीवों को, यावत् जीवन से रहित करता है, तब तक वह पुरुष कायिकी आदि चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से ताड़वृक्ष निष्पन्न हुआ है, वे जीव भी कायिकी आदि चार क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं और जिन जीवों के शरीर से ताड़-फल निष्पन्न हुआ है, वे जीव कायिकी आदि पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं । जो जीव नीचे पड़ते हुए ताड़फल के लिए स्वाभाविक रूप से उपकारक (सहायक) होते हैं, उन जीवों को भी कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं। __विवेचन ताड़वृक्ष को हिलाने और उसके फल को गिराने से सम्बन्धित जीवों को लगने वाली क्रियाएँ-(१) जो पुरुष ताड़वृक्ष को हिलाता है, अथवा उसके फल को नीचे गिराता है, वह ताड़फल के जीवों की और ताड़फल के आश्रित जीवों की प्राणातिपातक्रिया करता है और जो प्राणातिपातक्रिया करता है वह कायिकी आदि प्रारम्भ की चार क्रियाएँ अवश्य करता है। इस अपेक्षा से उस पुरुष को कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं । (२) ताड़वृक्ष और ताड़फल निर्वर्तक जीवों को भी पूर्वोक्त पांचों क्रियाएँ लगती हैं, क्योंकि वे स्पर्शादि द्वारा दूसरे जीवों का विघात करते हैं। (३) जब पुरुष ताड़फल को हिलाता है या तोड़ता है, तत्पश्चात् जब वह फल अपने भार से नीचे गिरता है और उसके द्वारा अन्य जीवों की हिंसा होती है, तब उस पुरुष को चार क्रियाएँ लगती हैं, क्योंकि ताड़फल को हिलाने में साक्षात् वधनिमित्त होते हुए भी ताड़फल के गिरने से होने वाले जीवों के वध से साक्षात् निमित्त नहीं है, परम्परानिमित्त है। इसलिए उसे प्राणातिपातिकी के अतिरिक्त शेष चार क्रियाएँ लगती हैं। (४) इसी प्रकार ताड़वृक्ष निष्पादक जीवों को भी चार क्रियाएँ लगती हैं। (५) ताड़फल के निष्पादक जीवों को पांचों क्रियाएँ लगती हैं, क्योंकि वे प्राणातिपात में साक्षात् निमित्त होते हैं। (६) नीचे गिरते हुए ताड़फल के जो जीव उपकारक होते हैं, उन्हें भी पांच क्रियाएँ लगती हैं, क्योंकि प्राणिवध में वे प्रायः निमित्त होते हैं। इस प्रकार फल के आश्रित ६ क्रियास्थान कहे गए हैं। इन सूत्रों की विशेष व्याख्या पंचम शतक के छठे उद्देशक में उक्त धनुष फैंकने (चलाने) वाले व्यक्ति के प्रकरण से जान लेनी चाहिए। __कठिन शब्दार्थ-तालमारुभइ-ताड़वृक्ष पर चढ़े। पचालेमाणे-चलाता (हिलाता) हुआ। पवाडेमाणे-नीचे गिराता हुआ। णिव्वत्तिए-निष्पन्न (उत्पन्न) हुआ। गरुयत्ताए–भारीपन से। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७२१ (ख) व्याख्याप्रज्ञप्ति खण्ड १ (आगम प्र. समिति) श. ५, उ.६, सू. १० से १२, पृ. ४७०-४७१
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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