SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 634
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०१ सोलहवाँ शतक : उद्देशक - ९ यावत् बलिपीठ (तक का परिमाण भी कहना चाहिए।) तथा उपपात से लेकर यावत् आत्मरक्षक तक सभी बातें पूर्ववत् कहनी चाहिए । विशेषता यह है कि (बलि - वैरोचनेन्द्र की ) स्थिति सागरोपम से कुछ अधिक की कही गई सभी बातें पूर्ववत् जाननी चाहिए। यावत् 'वैरोचनेन्द्र बलि है, वैरोचनेन्द्र बलि है' यहाँ तक कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कह यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन – चमरेन्द्र और बलीन्द्र की सुधर्मा सभा में प्रायः समानता -- जिस प्रकार दूसरे शतक के आठवें उद्देशक में चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा का वर्णन किया गया है, उस प्रकार यहाँ भी बलीन्द्र की सुधर्मा सभा के विषय में कहना चाहिए। वहाँ जिस प्रकार तिगिञ्छकूट नामक उत्पात पर्वत का परिमाण कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी रुचकेन्द्र नामक उत्पातपर्वत का परिमाण कहना चाहिए। तिगिञ्छकूट पर्वत पर स्थित प्रासादावतंसकों का जो परिमाण कहा गया है, वही परिमाण रुचकेन्द्र उत्पातपर्वत स्थित प्रासादावतंसकों का है । प्रासादावतंसकों मध्य भाग में बलीन्द्र के सिंहासन तथा उसके परिवार के सिंहासनों का वर्णन भी चमरेन्द्र से सम्बन्धित सिंहासनों के समान जानना चाहिए। विशेष अन्तर यह है कि बलीन्द्र के सामानिक देवों के सिंहासन साठ हजार हैं, जब कि चमरेन्द्र के सामानिक देवों के सिंहासन ६४ हजार हैं तथा आत्मरक्षक देवों के आसन प्रत्येक के सांमानिकों के सिंहासनों से चौगुने हैं। जिस प्रकार तिमिञ्छकूट में तिगिञ्छ रत्नों की प्रभा वाले उत्पलादि होने से उसका अन्वर्थक नाम तिमिञ्छकूट है उसी प्रकार रुचकेन्द्र में रुचकेन्द्र रत्नों की प्रभा वाले उत्पलादि होने के कारण उसका अन्वर्थक नाम रुचकेन्द्रकूट कहा गया है । बलिचंचा नगरी (राजधानी) का परिमाण कहने के पश्चात् उसके प्राकार, द्वार, उपकारिकालयन, (द्वार के ऊपर के गृह ) प्रासादावतंसक, सुधर्मा सभा, सिद्धायतन (चैत्य-भवन) उपपातसभा, हृद, अभिषेकसभा, आलंकारिकसभा और व्यवसायसभा आदि का स्वरूप और प्रमाण बलिपीठ के वर्णन तक कहना चाहिए ।" ॥ सोलहवाँ शतक : नौवां उद्देशक समाप्त ॥१६-९॥ १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७१८-७१९ (ख) भगवती. (आगम प्र. स. ब्यावर ) खण्ड १, श. २ उ. ८ पृ. २३५, २३७
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy