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________________ नवमो उद्देसओ : 'बलि' नौवाँ उद्देशक : बलि (वैरोचनेन्द्र-सभा) बलि-वैरोचनेन्द्र की सुधर्मासभा से सम्बन्धित वर्णन १. कहिं णं भंते! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता ? गोयमा ! जंबद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेजे. जहेव चमरस्स ( स. २ उ.८ सु. १) जाव बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो रुयगिंदे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते सत्तरस एक्कवीसे जोयणसए एवं पमाणं जहेव तिगिंछिकूडस्स, पासायवडेंसगस्स वितं चेव पमाणं, सीहासणं सपरिवारं बलिस्स परियारेणं अट्ठो तहेव, नवरं रुयिगिंदप्पभाइं ३ कुमुयाई। सेसं तं चेव जाव बलिचंचाए रायहाणीए अन्नेसिं च जाव निच्चे, रुयगिंदस्स णं उप्पायपव्वयस्स उत्तरेणं छक्कोडिसए तहेव जाव चत्तालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो बलिचंचा नामं रायहाणी पन्नत्ता; एगं जोयणसयसहस्सं पमाणं तहेव जाव बलिपेढस्स उववातो जाव आयरक्खा सव्वं तहेव निरवसेसं, नवरं सातिरेगं सागरोवमं ठिती पन्नत्ता। सेसं तं चेव जाव बली वइरोयणिंदे, बली वइरोयणिंदे। सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरित। ॥ सोलसमे सए : नवमो उद्देसओ समत्तो॥१६-९॥ [१ प्र.] भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की सुधर्मा सभा कहाँ है ? [१ उ.] गौतम! जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में तिरछे असंख्येय द्वीपसमुद्रों को उल्लंघ कर इत्यादि, जिस प्रकार (दूसरे शतक के ८ वें उद्देशक, सू. १ में) चमरेन्द्र की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना, यावत् ( अरुणवरद्वीप की बाह्य वेदिका से अरुणवर-द्वीप समुद्र में) बयालीस हजार योजन अवगाहन करने के बाद वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि का रुचकेन्द्र नामक उत्पात-पर्वत है । वह उत्पात पर्वत १७२१ योजन ऊँचा है। उसका शेष सभी परिमाण तिगिञ्छकूट पर्वत के समान जानना चाहिए। उसके प्रासादावतंसक का परिमाण उसी प्रकार जानना चाहिए। तथा बलीन्द्र के परिवार सहित सपरिवार सिंहासन का अर्थ भी उसी प्रकार जानना चाहिए। विशेषता यह है कि यहाँ रुचकेन्द्र (रत्नविशेष) की प्रभा वाले कुमुद आदि हैं। शेष सभी उसी प्रकार हैं। यावत् वह बलिचंचा राजधानी तथा अन्यों का नित्य आधिपत्य करता हुआ विचरता है। उस रुचकेन्द्र उत्पात-पर्वत के उत्तर से छह सौ पचपन करोड़ पैंतीस लाख पचास हजार योजन तिरछा जाने पर नीचे रत्नप्रभा पृथ्वी में पूर्ववत् यावत् चालीस हजार योजन जाने के पश्चात् वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की बलिचंचा नामक राजधानी है। उस राजधानी का विष्कम्भ (विस्तार) एक लाख योजन है। शेष सभी प्रमाण पूर्ववत् (जानना चाहिए)
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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