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________________ सत्तमो उद्देसओ : सप्तम उद्देशक कण्णीय : कर्णिका (के जीव सम्बन्धी) १. कण्णिए णं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे ? एवं चेव निरवसेसं भाणियव्वं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति०। ॥ एक्कारसमे सए सत्तमो उद्देसओ समत्तो॥११.७॥ [१ प्र.] भगवन् ! एक पत्ते वाली कर्णिका (वनस्पति) एक जीव वाली है या अनेक जीव वाली है ? [१ उ.] गौतम ! इसका समग्र वर्णन उत्पलउद्देशक के समान करना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। - विवेचन—कर्णिका : एक वनस्पतिविशेष—वृत्तिकार के अनुसार कर्णिका का एक अर्थ बीजकोश है। कनेर का वृक्ष भी सम्भव है, जिसमें पत्ते और फूल लगते हैं। ॥ ग्यारहवां शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त ॥ ००० १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५१३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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