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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उपरितन चरमान्त में जीवादि का सद्भाव—लोक के उपरितन चरमान्त में सिद्ध हैं, इसलिए वहाँ एकेन्द्रिय देश और अनिन्द्रिय देश होते हैं। यहाँ यह एक द्विकसंयोगी विकल्प है, त्रिकसंयोगी दो-दो भंग कहने चाहिए। उनमें एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रिय के देश इस प्रकार का मध्यम भंग नहीं होता, क्योंकि द्वीन्द्रिय के देश, वहाँ असम्भव हैं, कारण द्वीन्द्रिय मारणान्तिक समुद्घात द्वारा मर कर ऊपर के चरमान्त में एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न हो, तो वहाँ भी उसका एक देश संभावित है, पूर्व चरमान्त के समान अनेक देश संभावित नहीं। क्योंकि वहाँ प्रदेश की हानि-वृद्धि से होने वाला लोकदन्तक (विषम-भाग) प्रतररूप नहीं होता।
उपरितन चरमान्त की अपेक्षा जीव-प्रदेश प्ररूपंणा में—एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के प्रदेश और द्वीन्द्रिय का एक प्रदेश, यह प्रथम भंग नहीं कहना चाहिए, क्योंकि वहाँ द्वीन्द्रिय का एक प्रदेश असंभव है, क्योंकि केवलीसमुद्घात के समय लोकव्यापक अवस्था के अतिरिक्त जहाँ किसी भी जीव का एक प्रदेश होता है, वहाँ नियमत: उसके असंख्यात प्रदेश होते हैं। अजीवों के १० भेद होते हैं, यथा-रूपी अजीव के ४ भेद-स्कन्ध, देश प्रदेश और परमाणु पुद्गल, एवं अरूपी अजीव के६ भेद-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के देश और प्रदेश, इस प्रकार अजीव के १० भेद हुए। उपरितन चरमान्त के विषय में अजीव-प्ररूपणा दशवें शतक के प्रथम उद्देशक में उक्त तमादिशा के विषय में अजीवों की वक्तव्यता के समान करनी चाहिए।
__ अधस्तन चरमान्त-नीचे के चरमान्त में—एकेन्द्रियों के बहुत देश, यह असंयोगी एक भंग तथा द्विकसंयोगी दो भंग-(१) एकेन्द्रियों के बहुत देश और द्वीन्द्रिय का एक देश (२) एकेन्द्रियों के बहुत देश
और द्वीन्द्रिय के देश, इस प्रकार का मध्यम भंग यहाँ नहीं घटित होता, क्योंकि वहाँ लोक-दन्तक का अभाव है। इस प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय के साथ दो-दो भंग होते हैं। इस प्रकार जीवदेश की अपेक्षा ११ भंग होते हैं। जीव प्रदेश-आश्रयी भंग इस प्रकार हैं, यथा—एकेन्द्रियों के प्रदेश एवं द्वीन्द्रिय के प्रदेश, एकेन्द्रिय के प्रदेश और द्वीन्द्रियों के प्रदेश। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय के प्रदेश के विषय में भंग जान लेने चाहिए। केवल—एकेन्द्रियों के बहुत प्रदेश और द्वीन्द्रिय का एक प्रदेश, यह प्रथम भंग असम्भावित होने से घटित नहीं होता। एकेन्द्रिय के बहुत प्रदेश, इस असंयोगी एक भंग को मिलाने से जीव-प्रदेश-आश्रयी कुल ११ भंग होते हैं।
उपरितन चरमान्त में कहे अनुसार अधस्तन चरमान्त में भी रूपी अजीव के चार और अरूपी अजीव के छह, ये सब मिलकर अजीवों के दस भेद होते हैं। नरक से लेकर वैमानिक एवं यावत् ईषत्प्राग्भार तक पूर्वादि चरमान्तों में जीवाजीवादि का निरूपण
७. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते किं जीवा. पुच्छा।
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७१५
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५. पृ. २५७८ २. (क) वही. भा. ५, पृ. २५७८
(ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७१६