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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३३] कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महासागर को देखता हुआ देखे, तथा तरता हुआ पार कर ले, एवं मैंने इसे स्वयं पार किया है, ऐसा माने, इस प्रकार का स्वप्न देखकर शीघ्र जाग्रत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है।
३४. इत्थी वा जाव सुविणंते एगं महं भवणं सव्वरयणामयं पासमाणे पासति, अणुप्पविसमाणे अणुप्पविसति, अणुप्पविट्ठमिति अप्पाणं मन्नति० तेणेव जाव अंतं करेति।
[३४] कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, सर्वरत्नमय एक महाभवन देखता हुआ देखे, उसमें प्रविष्ट होता हुआ प्रवेश करे तथा मैं इसमें स्वयं प्रविष्ट हो गया हूँ, ऐसा माने, इस प्रकार का स्वप्न देखकर शीघ्र जाग्रत हो तो, वह उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त कर देता है।
३५. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं विमाणं सव्वरयणामयं पासमाणे पासति, दुरूहमाणे दुरूहति, दुरूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव जाव अंतं करेति।
[३५] कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, सर्वरत्नमय एक महान् विमान को देखता हुआ देखता है, उस पर चढ़ता हुआ चढ़ता है, तथा मैं इस पर चढ़ गया हूँ, ऐसा स्वयं अनुभव करता है, ऐसा स्वप्न देखकर तत्क्षण जाग्रत होता है, तो वह व्यक्ति उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है।
- विवेचन-मोक्षगामी को दिखाई देने वाले स्वप्न—प्रस्तुत १४ सूत्रों (सू. २२ से ३५) में मोक्षगामी को दिखाई देने वाले १४ प्रकार के स्वप्नों के संकेत दिए हैं। इनमें से लोहराशि आदि तथा सुराजलकुम्भ आदि को स्वप्न में देखने वाला व्यक्ति दूसरे भव में, अर्थात्—मनुष्य सम्बन्धी दूसरे भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होता है, शेष बारह सूत्रों में कथित पदार्थों को तथारूप में स्वप्न में देखने वाला व्यक्ति उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है।
कठिन शब्दार्थ—सुविणंते—स्वप्न के अन्त में, अथवा स्वप्न के एक भाग में। हयपंतिं-घोड़ों की पंक्ति को। पासमाणे पासति—पश्यत्ता (देखने) के गुण से युक्त होकर देखता है, अर्थात् देखने की मुद्रा से युक्त या प्रयत्नशील होकर देखता है। दुरूहमाणे दुरूहति—ऊपर चढ़ता हुआ चढ़ता है। तक्खणामेवतत्काल ही। दामिणिं-गाय आदि को बांधने की रस्सी। पाईणपडीणायतं—पूर्व-पश्चिम-लम्बा। दुहओ समुद्दे पुटुं—दोनों ओर से समुद्र को छूती हुई। संवेल्लेइ—हाथों से समेटे। किण्हसुत्तगं-सुक्किलसुत्तगंकाला सूत, सफेद सूत । उग्गोवेमाणे-सुलझाता हुआ। अयरासिं-लोहराशि को। विक्खरइ–बिखेर देता है। उम्मूलेइ-जड़ से उखाड़ फेंकता है। सुरावियडकुंभं—सुरा-मदिरा रूप विकट-जल के कुम्भ को। सोवीर—सौवीरक—कांजी। ओगाहति—अवगाहन करता—प्रवेश करता है।
१. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ५, पृ. २५७० २. (क) वही, भा. ५, पृ. २५६६
(ख) भगवती, अ. वृत्ति, पत्र ७१२-७१३