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सोलहवां शतक : उद्देशक-६
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सुप्त-जागृत-अवस्था में स्वप्नदर्शन का निरूपण
२. सुत्ते णं भंते ! सुविणं पासति, जागरे सुविणं पासति, सुत्तजागरे सुविणं पासति ? गोयमा ! नो सुत्ते सुविणं पासति, नो जागरे सुविणं पासति, सुत्तजागरे सुविणं पासति।
[२ प्र.] भगवन् ! सोता हुआ प्राणी स्वप्न देखता है, जागता हुआ देखता है, अथवा सुप्त-जागृत (सोताजागता) प्राणी स्वप्न देखता है ?
[२ उ.] गौतम! सोता हुआ प्राणी स्वप्न नहीं देखता, और न जागता हुआ प्राणी स्वप्न देखता है, किन्तु सुप्त-जागृत प्राणी स्वप्न देखता है।
विवेचन—प्रस्तुत सूत्र (२) में स्वप्नदर्शन-सम्बन्धी प्रश्न द्रव्यनिद्रा (द्रव्यतः सुप्त) की अपेक्षा से किया गया है। इस दृष्टि से स्वप्न दर्शन न तो द्रव्यनिद्रावस्था में होता है, और न द्रव्यजागृतावस्था में, किन्तु द्रव्यतः सुप्तजागृत अवस्था में होता है। जीवों तथा चौवीस दण्डकों में सुप्त, जागृत एवं सुप्त-जागृत का निरूपण ___३. जीवा णं भंते ! किं सुत्ता, जागरा, सुत्तजागरा ?
गोयमा ! जीवा सुत्ता वि, जागरा वि, सुत्तजागरा वि। [३ प्र.] भगवन् ! जीव सुप्त हैं, जागृत हैं अथवा सुप्त- जागृत हैं ? [३ उ.] गौतम ! जीव सुप्त भी हैं, जागृत भी हैं और सुप्त-जागृत भी हैं। ४. नेरतिया णं भंते ! किं सुत्ता. पुच्छा। गोयमा ! नेरइया सुत्ता, नो जागरा, नो सुत्तजागरा। [४ प्र.] भगवन् ! नैरयिक सुप्त हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। [४ उ.] गौतम! नैरयिक सुप्त हैं, जागृत नहीं हैं और न वे सुप्त-जागृत हैं। ५. एवं जाव चउरिदिया।
[५.] इसी प्रकार (भवनपतिदेवों से लेकर) यावत् (एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रोन्द्रिय और) चतुरिन्द्रिय तक कहना चाहिए।
६. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! किं सुत्ता. पुच्छा। गोयमा ! सुत्ता, नो जागरा, सुत्तजागरा वि। [६ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव सुप्त हैं, इत्यादि प्रश्न। [६ उ.] गौतम! वे सुप्त है, जागृत नहीं हैं, सुप्त-जागृत भी हैं।
१. भगवती. अ. वृत्ति ७११