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सोलहवां शतक : उद्देशक-४
५६३ ५. जावतियं णं भंते! अट्ठमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निजरेति एवतियं कम्मं नेरइया वाससयसहस्सेणं वा वाससयसहस्सेहि वा वासकोडीए वा खवयंति ?
नो इणद्वे समढे। . [५ प्र.] भगवन् ! अष्टम भक्त (तेला) करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक लाख वर्षों में, अनेक लाख वर्षों में, या एक करोड़ वर्षों में क्षय कर पाता
[४ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं। ____६. जावतियं णं भंते ! दसमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निजरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरतिया वासकोडीए वा वासकोडीहिं वा वासकोडाकोडीए वा खवयंति ?
नो इणढे समठे।
[६ प्र.] भगवन् ! दशमभक्त (चौला) करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव, एक करोड़ वर्षों में, अनेक करोड़ वर्षों में या कोटा-कोटी वर्षों में क्षय कर पाता
[६ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं।
७. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चति—जावतियं अन्नगिलातए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरतिया वासेण वा वासेहि वा वाससएण वा नो खवयंति, जावतियं चउत्थभत्तिए, एवं तं चेव पुवभणियं उच्चारेयव् जाव वासकोडाकोडीए वा नो खवयंति ?
गोयमा ! “से जहानामए—केयि पुरिसे जुण्णे जराजजरियदेहे सिढिलतयावलितरंगसंपिणद्धगत्ते पविरलपरिसडियदंतेसेढी उण्हाभिहए तण्हाभिहए आउरे झुझिते पिवासिए दुब्बले किलंते, एगं महं कोसंबगंडियं सुक्कं जडिलं गंठिल्लं चिक्कणं वाइद्धं अपत्तियं मुंडेण परसुणा अक्कमेज्जा, तए णं से पुरिसे महंताई महंताई सद्दाई करेइ, नो महंताई महंताई दलाई अवद्दालेति, एवामेव गोयमा! नेरइयाणं पावाइं कम्माइं गाढीकयाई चिक्कणीकयाइं एवं जहा छट्ठसए ( स.६ उ. १ सु. ४) जाव नो महापज्जवसाणा भवंति।"
से जहा वा केयि पुरिसे अहिकरणिं आउडेमाणे महया जाव नो महापजवसाणा भवंति।
से जहानामए–केयि परिसे तरुणे बलवं जाव मेहावी निउणसिप्पोवगए एगं महं सामलिगंडियं उल्लं अजडिलं अगंठिल्लं अचिक्कणं अवाइद्धं संपत्तियं तिक्खेण परसुणा अक्कमेजा, तए णं से पुरिसे नो महंताई महंताई सद्दाइं करेति, महंताई महंताई दलाई अवद्दालेति, एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं अहाबादराई कम्माइं सिढिलीकयाइं णिट्ठियाई कयाइं जाव खिप्पामेव परिविद्धत्थाई भवंति, जावतियं तावतियं जाव महापज्जवसाणा भवंति।