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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
गोयमा ! जावं च ां से पुरिसे अयं अयकोट्टं सि अयोमयेणं संडासएणं उव्विहति वा पव्विहति वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणातिवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे, जेसिं पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो अये निव्वत्तिए, अयकोट्ठे निव्वत्तिए, संडासए निव्वत्तिए, इंगाला निव्वत्तिया, इंगालकड्डणी निव्वत्तिया, भत्था निव्वत्तिया, ते वि णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा ।
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[७ प्र.] भगवन् ! लोहा तपाने की भट्टी (अय: कोष्ठ) में तपे हुए लोहे को लोहे की संडासी से ( पकड़कर) ऊँचा - नीचा करने (ऊपर उठाने और नीचे करने) वाले पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
[७ उ.] गौतम ! जब तक वह पुरुष लोहा तपाने की भट्टी में लोहे की संडासी से ( पकड़कर) लोहे को ऊँचा या नीचा करता है, तब तक वह पुरुष कायिकी से लेकर प्राणातिपातिकी क्रिया तक पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है तथा जिन जीवों के शरीर से लोहा बना है, लोहे की भट्टी बनी है, संडासी बनी है, अंगारे बने हैं, अंगारे निकालने की लोहे की छड़ (यष्टि) बनी है और धमण बनी है, वे सभी जीव भी कायिकी से लेकर यावत् प्राणातिपातिकी तक पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं ।
८. पुरिसे णं भंते ! अयं अयकोट्ठाओ अयोमएणं संडासएणं गहाय अहिकरणिंसि उक्खिवमाणे वा निक्खिवमाणे वा कतिकिरिए ?
गोमा ! जावं चणं से पुरिसे अयं अयकोट्ठाओ जाव निक्खिवति वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणातिवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे, जेसिं पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो अये निव्वत्तिए, संडासएं निव्वत्तिते, चम्मेट्टे निव्वत्तिए, मुट्ठिए निव्वत्तिए, अधिकरणी णिव्वत्तिता, अधिकरणिखोडी णिव्वत्तिता, उदगदोणी णि० अधिकरणसाला निव्वत्तिया ते वि णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा ।
[८ प्र.] भगवन् ! लोहे की भट्टी में से, लोहे को, लोहे की संडासी से पकड़कर एहरन (अधिकरणी) पर रखते और उठाते हुए पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
[ ८ उ.] गौतम ! जब तक लोहा तपाने की भट्टी में से लोहे को संडासी से पकड़कर यावत् रखता है, तब तक वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी तक पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से लोहा बना है, संडासी बनी है, घन बना है, हथौड़ा बना है, एहरन बनी है, एहरन का लकड़ा बना है, गर्म लोहे
ठंडा करने की उदकद्रोणी (कुण्डी) बनी है, तथा अधिकरणशाला (लोहार का कारखाना) बनी है, वे जीव भी कायिकी आदि पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं।
विवेचन — प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. ७-८) में लोहे की भट्टी में लोहे को संडासी से पकड़कर ऊँचा-नीचा करने वाले या भट्टी से एहरन पर रखने -उठाने वाले व्यक्ति को तथा जिन जीवों के शरीर से लोहा तथा उपकरण बने हैं, उन सबको कायिकी से लेकर प्राणातिपातिकी तक पांचों क्रियाओं की प्ररूपणा की गई है ।
पांच क्रियाओं के नाम- कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी । इनका स्वरूप पहले बताया जा चुका है।