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________________ ५३६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १५१. तए णं से दढप्पतिण्णे केवली बहूई वासाइं केलिपरियागं पाउणेहिति, बहू० पा० २ अप्पणो आउसेसं जाणेत्ता भत्तं पच्चक्खाहिति एवं जहा उववातिए जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति। ॥ तेयनिसग्गो समत्तो॥ ॥समत्तं च पण्णरसमं सयं एक्कसरयं ॥१५॥ __ [१५१] इसके बाद दृढप्रतिज्ञ केवली बहुत वर्षों तक केवलज्ञानी-पर्याय का पालन करेंगे, फिर अपना आयुष्य-शेष (थोड़ा-सा आयुष्य शेष) जान कर भक्तप्रत्याख्यान (संथारा) करेंगे। इस प्रकार औपपातिक सूत्र के कथनानुसार वे यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेंगे। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन—प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. १४८ से १५१) में गोशालक के जीव के अन्तिम भव—महाविदेहक्षेत्र में जन्म और दृढप्रतिज्ञ केवली होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने तक का वर्णन है। साथ ही यह प्रेरणात्मक वर्णन है कि उन्होंने अपने केवलज्ञान के आलोक में अपने अनादि-अनन्त संसार-प्ररिभ्रमण का घटनाचक्र देख कर अपने अनुभव के अनुगामी श्रमणों से भी आचार्यादि के प्रति द्वेष, विरोध, अविनय, आशातना आदि न करने का उपदेश दिया। जिसे श्रमणों ने शिरोधार्य किया और आलोचनादि करके वे शुद्ध हुए। पण्णरसमं सयं एक्कसरयं : आशय—इस शतक की पूर्णाहूति में 'एक्कासरयं' शब्द है, जिसका अर्थ हेमचन्द्राचार्य ने किया है—'एक्कससियं' पद अव्यय है, उसका अर्थ है—शीघ्र, झटपट। आशय यह है कि वर्तमान में इस शतक के सम्बन्ध में ऐसी धारणा है कि इस शतक को झटपट एक दिवस में ही पढ़ना चाहिए। अगर एक दिन में यह शतक पूर्ण न हो तो जब तक इसका अध्ययन अध्यापन चालू रहे, तब तक आयम्बिल करना चाहिए। पुमत्ताए : पुत्तताए : दो पाठ : दो अर्थ—(१) पुरुष के रूप में, अथवा (२) पुत्र के रूप में। ॥ तेजोनिसर्ग समाप्त॥ ॥ पन्द्रहवाँ : एकस्मरिक शतक समाप्त॥ ००० १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २, (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ.७४१-७४२ २. वही, पत्र ७४२ ३. वही, पत्र ७४२
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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