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________________ ५३१ पन्द्रहवाँ शतक वहाँ से यावत् काल कर राजगृह नगर के बाहर (सामान्य) वेश्यारूप में उत्पन्न होगा। वहाँ से शस्त्र से वध होने से यावत् काल करके दूसरी बार राजगृह नगर के भीतर (विशिष्ट) वेश्या के रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में विन्ध्य पर्वत के पादमूल (तलहटी) में बेभेल नामक सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा । वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता पिता उचित शुल्क (द्रव्य) और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप में अर्पण करेंगे। वह उसकी भार्या होगी। वह (अपने पति द्वारा) इष्ट, कान्त, यावत् अनुमत, बहुमूल्य सामान के पिटारे के समान, तेल की कुप्पी के समान अत्यन्त सुरक्षित, वस्त्र की पेटी के समान सुसंगृहीत (निरुपद्रव स्थान में रखी हुई), रत्न के पिटारे के समान सुरक्षित तथा शीत, उष्ण यावत् परीषह उपसर्ग उसे स्पर्श न करें, इस दृष्टि से अत्यन्त संगोपित होगी । वह ब्राह्मण - पुत्री गर्भवती होगी और एक दिन किसी समय अपने ससुराल से पीहर ले जाई जाती हुई मार्ग में दावाग्नि की ज्वाला से पीडित होकर काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के अग्निकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगी। १३९. से णं ततोहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभिहिति, माणुसं विग्गहं लभित्ता केवलं बोधिं बुज्झिहिति, केवलं बोधिं बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति । तत्थ वि णं विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा दहिणिल्लेसु असुरकुमारेसु देवे देवत्ता उववज्जिहिति । [१३९] वहाँ से च्यव कर वह मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा । फिर वह केवलबोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा। तत्पश्चात् मुण्डित होकर अगारवास का परित्याग करके अनगार धर्म को प्राप्त करेगा । किन्तु वहाँ श्रामण्य (चारित्र) की विराधना करके काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों में देवरूप में उत्पन्न होगा । १४०. से णं ततोहिंतो जाव उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं तं चेव तत्थ वि णं विराहियसामण्णे कालमासे जाव किच्चा दाहिणिल्लेसु नागकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति । [१४०] वहाँ से च्यव कर वह मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि आदि पूर्ववत् सब वर्णन जानना, यावत् प्रव्रजित होकर चारित्र की विराधना करके काल के समय काल करके दक्षिणनिकाय के नागकुमार देवों में देवरूप में उत्पन्न होगा। १४१. से णं ततोहिंतो अनंतरं० एवं एएणं अभिलावेणं दाहिणिल्लेसु सुवण्णकुमारेसु, दाहिणिल्लेसु विज्जुकुमारेसु, एवं अग्गिकुमारवज्जं जाव दाहिणिल्लेसु थणियकुमारेसु० । [१४१] वहाँ से च्यव कर वह मनुष्यशरीर प्राप्त करेगा, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् । यावत् इसी प्रकार के पूर्वोक्त अभिलाप के अनुसार कहना । (विशेष यह है कि श्रामण्य विराधना करके वह क्रमशः ) दक्षिणनिकाय के सुपर्णकुमार देवों में उत्पन्न होगा, फिर (इसी प्रकार) दक्षिणनिकाय के विद्युत्कुमार देवों में उत्पन्न होगा, इसी प्रकार अग्निकुमार देवों को छोड़कर यावत् दक्षिणनिकाय के स्तनितकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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