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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र छठ (बेले-बेले) तप के साथ यावत् आतापना लेते हुए विचरेंगे। ___वह विमलवाहन राजा किसी दिन रथचर्या करने के लिए निकलेगा। जब सुभूमिभाग उद्यान से थोड़ी दूर रथचर्या करता हुआ वह विमलवाहन राजा, निरन्तर छठ-छठ तप के साथ आतापना लेते हुए सुमंगल अनगार को देखेगा; तब उन्हें देखते ही वह एकदम क्रुद्ध होकर यावत् मिसमिसायमान (क्रोध से अत्यन्त प्रज्वलित) होता हुआ रथ के अग्रभाग से सुमंगल अनगार को टक्कर मार कर नीचे गिरा देगा।
विमलवाहन राजा द्वारा रथ के अग्रभाग से टक्कर मार कर सुमंगल अनगार को नीचे गिरा देने पर वह (सुमंगल अनगार) धीरे-धीरे उठेगे और दूसरी बार फिर बाहें ऊँची करके यावत् आतापना लेते हुए विचरेंगे।
तब वह विमलवाहन राजा फिर दूसरी बार रथ के अग्रभाग से टक्कर मार कर नीचे गिरा देगा, अतः सुमंगल अनगार फिर दूसरी बार शनैः शनैः उठेंगे और अवधिज्ञान का उपयोग लगा कर विमलवाहन राजा के अतीत काल को देखेंगे। फिर वह विमलवाहन राजा से इस प्रकार कहेंगे-'तुम वास्तव में विमलवाहन राजा नहीं हो, तुम देवसेन राजा भी नहीं हो, और न ही तुम महापद्म राजा हो; किन्तु तुम इससे पूर्व तीसरे भव में श्रमणों के घातक गोशालक नामक मंखलिपुत्र थे, यावत् तुम छद्मस्थ अवस्था में ही काल कर (मर) गए थे। उस समय समर्थ होते हुए भी सर्वानुभूमि अनगार ने तुम्हारे अपराध को सम्यक् प्रकार से सहन कर लिया था, क्षमा कर दिया था, तितिक्षा की थी और उसे अध्यासित (समभावपूर्वक सहन) किया था। इस प्रकार सुनक्षत्र अनगार ने भी समर्थ होते हुए यावत् अध्यासित किया था। उस समय श्रमण भगवान् महावीर ने समर्थ होते हुए भी यावत् अध्यासित (समभावपूर्वक सहन) कर लिया था। किन्तु मैं इस प्रकार सहन यावत् अध्यासित नहीं करूँगा। मैं तुम्हें अपने तप-तेज से घोड़े, रथ और सारथी सहित एक ही प्रहार में कूटाघात के समान राख का ढेर कर दूंगा।
जब सुमंगल अनगार विमलवाहन राजा से ऐसा कहेंगे, तब वह एकदम कुपित यावत् क्रोध से आगबबूला हो उठेगा फिर तीसरी बार भी रथ के सिरे से टक्कर मार कर सुमंगल अनगार को नीचे गिरा देगा।
जब विमलवाहन राजा अपने रथ के सिरे से टक्कर मार कर, सुमंगल अनगार को तीसरी बार नीचे गिरा देगा, तब सुमंगल अनगार अतीव क्रुद्ध यावत् कोपावेश से मिसमिसाहट करते हुए आतापनाभूमि से नीचे उतरेंगे
और तैजस-समुद्घात करके सात-आठ कदम पीछे हटेंगे, फिर विमलवाहन राजा को अपने तप-तेज से घोड़े, रथ और सारथि सहित एक ही प्रहार से यावत् (जला कर) राख का ढेर कर देंगे।
विवेचन—प्रस्तुत लम्बे सूत्र (सू. १३२) में गोशालक के देवभव से लेकर मनुष्यभव में विमलवाहन राजा के रूप में सुमंगल अनगार को तीन बार पीड़ा देने पर उनके द्वारा तपोजन्य तेजोलेश्या से भस्म कर देने तक का वृतान्त उल्लिखित किया गया है।
एक शंका : समाधान—समवायांगसूत्र की टीका से ज्ञात होता है कि उत्सर्पिणी काल में 'विमल' नामक इक्कीसवें तीर्थंकर होंगे और वे अवसर्पिणी काल के चतुर्थ तीर्थंकर के स्थान में प्राप्त होते हैं। उनसे