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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र "तए णं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा तच्चं पि रहसिरेणं नोल्लाविए समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुहति, आ० प० २ तेयासमुग्घातेणं समोहन्निहिति, तेया० स० २ सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्किहिति, सत्तट्ठ० पच्चो० २ विमलवाहणं रायं सहयं ससारहीयं तवेणं तेयेण जाव भासरासिं करेहिति।"
_[१३२ प्र.] भगवन् ! वह गोशालक देव उस देवलोक से आयुष्य, भव और स्थिति का क्षय होने पर, देवलोक से च्यव कर यावत् कहाँ उत्पन्न होगा ?
। [१३२ उ.] गौतम ! इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के (अन्तर्गत) भारतवर्ष (भरतक्षेत्र) में विन्ध्यपर्वत के पादमूल (तलहटी) में, पुण्ड्र जनपद के शतद्वार नामक नगर में सन्मूर्ति नाम के राजा की भद्रा-भार्या की कुक्षि से पुत्ररूप में उत्पन्न होगा। वह वहाँ नौ महीने और साढ़े सात रात्रिदिवस यावत् भलीभांति व्यतीत होने पर यावत् सुन्दर (रूपवान्) बालक के रूप में जन्म लेगा। जिस रात्रि में उस बालक का जन्म होगा, उस रात्रि में शतद्वार नगर के भीतर और बाहर, अनेक भार-प्रमाण और अनेक कुम्भप्रमाण पद्मों (कमलों) एवं रत्नों की वर्षा होगी। तब उस बालक के माता-पिता ग्यारह दिन बीत जाने पर बारहवें दिन उस बालक का गुणयुक्त एवं गुणनिष्पन्न नामकरण करेंगे—क्योंकि हमारे इस बालक का जब जन्म हुआ, तब शतद्वार नगर के भीतर और बाहर यावत् पद्मों और रत्नों की वर्षा हुई थी, इसलिए हमारे इस बालक का नाम 'महापद्म' हो।
तदनन्तर ऐसा विचार कर उस बालक के माता-पिता उसका नाम रखेंगे-'महापद्म'।
तत्पश्चात् उस महापद्म बालक के माता-पिता उसे कुछ अधिक आठ वर्ष का जान कर शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में बहुत बड़े (या बड़े धूमधाम से) राज्याभिषेक से अभिषिक्त करेंगे। इस प्रकार वह (महापद्म) वहाँ का राजा बन जाएगा। औपपातिक में वर्णित राज-वर्णन के समान इसका वर्णन जान लेना चाहिए। वह महाहिमवान् आदि पर्वत के समान महान् एवं बलशाली होगा, यावत् वह (राज्यभोग करता हुआ) विचरेगा।
किसी समय दो महर्द्धिक यावत् महासौख्यसम्पन्न देव उस महापद्म राजा का सेनापतित्व करेंगे। वे दो देव इस प्रकार हैं—पूर्णभद्र और मणिभद्र । यह देख कर शतद्वार नगर के बहुत-से राजेश्वर (मण्डलपति), तलवर, राजा, युवराज यावत् सार्थवाह आदि परस्पर एक दूसरे को बुलायेंगे और कहेंगे—देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा के महर्द्धिक यावत् महासौख्यशाली दो देव सेनाकर्म करते हैं। इसलिए (हमारी सम्मति है कि) देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा का दूसरा नाम देवसेन या देवसैन्य हो।
तब उस महापद्म राजा का दूसरा 'देवसेन' या 'देवसैन्य' भी होगा।
तदनन्तर किसी दिन उस देवसेन राजा के शंखदल (-खण्ड) या शंखतल के समान निर्मल एवं श्वेत चार दांतों वाला हस्तिरत्न समुत्पन्न होगा। तब वह देवसेन राजा उस शंखतल (दल) के समान श्वेत एवं निर्मल चार दांत वाले हस्तिरत्न पर आरूढ हो कर शतद्वार नगर के मध्य में होकर बार-बार बाहर जाएगा और आएगा। यह देख बहुत-से राजेश्वर यावत् सार्थवाह प्रभृति परस्पर एक दूसरे को बुलाएँगे और फिर इस प्रकार कहेंगे-'देवानुप्रियो ! हमारे देवसेन राजा के यहाँ शंखदल या शंखतल के समान श्वेत, निर्मल एवं चार दांतों