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________________ पन्द्रहवाँ शतक ४९३ लिए श्रमण निर्ग्रन्थों को मना किया था, क्योंकि उस समय गोशालक पर तेजोलेश्या के अहंकार का भूत सवार था। किन्तु अब तेजोलेश्या का प्रभाव नष्ट हो जाने से गोशालक के साथ धर्मचर्चा एवं वादविवाद करने की श्रमणों को छूट दी, जिससे जनता एवं आजीवक मत के साधु और उपासकगण भ्रम में न रहें, सत्य को जान सकें। कठिन शब्दार्थ-अगणि-झामिए—अग्नि से किंचित् दग्ध (जला हुआ)। अगणिझूसिएअग्नि से झुलसा हुआ। छंदेणं-इच्छानुसार। हयतेए-जिसका तेज हत हो गया (फीका पड़ गया), गयतेए-गततेज। पडिचोयणा–प्रतिप्रेरणा। पडिसारणा–धर्म का स्मरण करना। णिप्पट्ठपसिणवागरणं—प्रश्न का उत्तर न दे सकने योग्य। भगवदादेश से निर्ग्रन्थों की धर्मचर्चा में गोशालक निरुत्तर, पीड़ा देने में असमर्थ, आजीविक स्थविर भगवान् के निश्राय में ८३. तए णं समणा निग्गंथा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वं० २ जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छंति, उवा० २ गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोदणाए पडिचोदेंति ध० प० २ धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेंति, ध० प० २ धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेंति, ध० प० २ अटेहि य हेऊहि य कारणेहि य जाव निप्पट्ठपसिणवागरणं करेंति। [८३] जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ऐसा कहा, तब उन श्रमण-निर्ग्रन्थों ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया। फिर जहाँ मंखलिपुत्र गोशालक था, वहाँ आए और उसे धर्म-सम्बन्धी प्रतिप्रेरणा (उसके मत के प्रतिकूल वचन) की धर्मसम्बन्धी प्रतिस्मारणा (उसके मत के प्रतिकूल अर्थ का स्मरण कराना) की, तथा धार्मिक प्रत्युपचार से उसे तिरस्कृत किया, एवं अर्थ, हेतु, प्रश्न व्याकरण और कारणों से उसे निरुत्तर कर दिया। ८४. तए णं गोसाले मंखलिपुत्ते समणेहिं निग्गंथेहिं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोइजमाणे जाव निप्पट्ठपसिणवागरणे कीरमाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे नो संचाएति समणाणं निग्गंथाणं सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएत्तए, छविच्छेयं वा करेत्तए। [८४] इसके बाद श्रमण-निर्ग्रन्थों द्वारा धार्मिक प्रतिप्रेरणा आदि से तथा अर्थ, हेतु, व्याकरण एवं प्रश्नों से यावत् निरुत्तर किये जाने पर गोशालक मंखलिपुत्र अत्यन्त कुपित हुआ यावत् मिसमिसाता हुआ क्रोध से १. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २४३९ २. (क) वही, भा. ५, पृ. २४३८ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६८३-६८४ ३. जाव शब्द सूचक पाठ—'वागरणं वागरेंति।'
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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