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पन्द्रहवाँ शतक
४७९
" जे वि याइं आउसो ! कासवा ! अम्हं समयंति केयि सिझिंसु वा सिझंति वा सिज्झिस्संति वा सव्वे ते चउरासीतिं महाकप्पसयसहस्साइं सत्त दिव्वे सत्त संजहे सत्त सन्निगब्भे सत्त पउट्टपरिहारे पंच कम्मुणि सयसहस्साइं सटुिं च सहस्साई छच्च वए तिण्णि य कम्मंसे अणुपुव्वेणं खवइत्ता तओ पच्छा सिझंति, बुझंति, मुच्चंति, परिनिव्वाइंति सव्वदुक्खाणमंत करेंसु वा, करेति वा, करिस्संति वा।
से जहा वा गंगा महानदी जतो पवूढा, जहिं वा पज्जुवत्थिता, एस णं अद्धा पंच जोयणसताई आयामेणं, अद्धजोयणं विक्खंभेणं, पंच धणुसयाई आवेहेणं, एएणं गंगापमाणेणं सत्ता गंगाओ सा एगा महागंगा, सत्त महागंगाओ सा एगा साईणगंगा, सत्त सादीणगंगाओ सा एगा मड्डगंगा, सत्त मड्डगंगाओ सा एगा लोहियगंगा, सत्त लोहियगंगाओ सा एगा आवतीगंगा, सत्त आवतीगंगाओ सा एगा परमावती, एवामेव सपुव्वावरेणं एगं गंगासयसहस्सं सत्तरस य सहस्सा छच्च अगुणपन्नं गंगासता भवंतीति मक्खाया। तासिं दुविहे उद्धारे पन्नत्ते, तं जहा—सुहुमबोंदिकलेवरे चेव, बादरबोंदिकलेवरे चेव। तत्थ णंजे से सुहुमबोंदिकलेवरे से ठप्पे। तत्थ णं जे से बादरबोंदिकलेवरे ततो णं वाससते गते वाससते गते एगमेगं गंगावालुयं अवहाय जावतिएणं कालेणं से कोटे खीणे णीरए निल्लेवे निट्ठिए भवति से त्तं सरे सरप्पमाणे। एएणं सरप्पमाणेणं तिण्णि सरसयसाहस्सीओ से एगे महाकप्पे। चउरासीतिं महाकप्पसयसयसहस्साइं से एगे महामाणसे। अणंतातो संजहातो जीवे चयं चयित्ता उवरिल्ले मापासे संजहे देवे उववज्जति। से णं तत्थ दिव्वाइंभोगभोगाइं भंजमाणे विहरड, विहरित्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चयित्ता पढमे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाति। से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणसे संजहे देवे उववजइ। से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं जाव विहरित्ता ताओ देवलोगाओ आयु० जाव चइत्ता दोच्चे सन्निगब्भे जीवे पच्चायाति। से णं ततोहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता हेट्ठिल्ले माणसे संजूहे देवे उववजइ। से णं तत्थ दिव्वाइं जाव चइत्ता तच्चे सन्निगब्भे जीवे पच्चायाति। से णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता उवरिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववजति। से णं तत्थ दिव्वाइं भोग० जाव चइत्ता चतुत्थे सन्निगब्भे जीवे पच्चायाति। से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता मज्झिल्ले मणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जति। से णं तत्थ दिव्वाइं भोग० जाव चइत्ता पंचमे सण्णिगब्भे जीव पच्चायाति। से णं तओहिंतो अणंतरं उववट्टित्ता हेट्ठिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ। से णं तत्थ दिव्वाइं भोग० जाव चइत्ता छटे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति। से णं तओहिंतो अणंतरं उववट्टित्ता बंभलोगे नामं से कप्पे पन्नत्ते पाईणपडीणायते उदीणदाहिणवित्थिण्णे जहा ठाणपदे जाव' पंच वडेंसया पन्नत्ता, तं जहा—असोगवडेंसए जाव'
१. देखिय पण्णवणासुत्तं भा. १, सू. २०१, पृ.७३ (महावीर जैन विद्यालय प्रकाशन) २. 'जाव' पद सूचक पाठ—'सत्तिवण्णवडेंसए चंपगवडेंसए चूयवडेंसए मज्झे य बंभलोयवडेंसए इत्यादि।'
- भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६७७