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________________ ४६१ पन्द्रहवाँ शतक विवेचन—प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. ४८ से ५२ तक) में गोशालक द्वारा वैश्यायन बालतपस्वी को चिढ़ा कर छेड़छाड़ करने का, वैश्यायन द्वारा क्रुद्ध होकर गोशालक पर तेजोलेश्या के प्रहार करने का 'भगवान् द्वारा गोशालक के प्राणरक्षार्थ शीत-तेजोलेश्या का प्रतिघात करने का एवं यह देख कर वैश्यायन द्वारा भी अपनी उष्ण तेजोलेश्या वापस खींच लेने का; इस प्रकार चार क्रमों में यह वृतान्त अंकित किया गया है। कठिन शब्दार्थ—सद्धिं-साथ। उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय—दोनों भुजाएं ऊँची रख कर। आयावणभूमीए—आतापना भूमि में। आइच्च-तेयतवियाओ—आदित्य—सूर्य के तेज-ताप से तपी हुई। छप्पईओ-षट्पदी-जुएँ। पडियाओ-पड़ी-गिरी हुई। सणियं-सणियं-शनैः शनैः। भवं-आप। मुणिय तत्त्वज्ञ अथवा तपस्वी।जुया-सेज्जायरए-जुओं के शय्यातर (जुओं के घर के स्वामी)। आसुरुत्तेकुपित हुआ। मिसिमिसेमाणे-मिसमिसाहट करते (क्रोध से दांत पीसते) हुए। तेया-समुग्घाएण-तैजससमुद्घात। वहाए-वध के लिए। तेयं—तेजोलेश्या । पडिसाहरणट्ठयाए—पीछे हटाने-प्रतिहत करने के लिए। उसिणा-उष्ण। साउसिणं-स्वकीय उष्ण। तेयलेस्स—तेजोलेश्या को। अकीरमाणं-नहीं करता हुआ। साअं—अपनी। गयमेयं—(मैंने) जान लिया। भगवान् द्वारा गोशालक पर तेजोलेश्याप्रहार के शमन का वृतान्त तथा गोशालक को तेजोलेश्याविधि का कथन ५३. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी-किं णं भंते ! एस जूयासेज्जायरए तुब्भे एवं वदासी—'से गयमेतं भगवं ! गयमेतं भगवं !' ? तए णं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वदामि "तमं णं गोसाला! वेसियायणं बालतवस्सिं पासति, पा० २ ममं अंतियातो सणियं सणियं पच्चोसक्कसि, प० २ जेणेव वेसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छसि, से० उ० २ वेसियायणं बालतवस्सिं एवं वयासी-किं भवं मुणी मुणिए ? उदाहु जूयासेज्जायरए ? तए णं से वेसियाणे बालतवस्सी तव एयमटुं नो आढाति, नो परिजाणति, तुसिणीय संचिट्ठति। तए णं तुमं गोसाला ! वेसियायणं बालतवस्सिं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी—किं भवं मुणी जाव सेजायरए ? तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी तुमं ( ? मे ) दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव पच्चोसक्कति, प० २ तव वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरति। तए णं अहं गोसाला ! तव अणुकंपणट्ठताए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स उसिणतेयपडिसाहरणट्ठयाए एत्थ णं अंतरा सीयलियं तेयलेस्सं निसिरामि जाव पडिहयं जाणित्ता तव य सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेदं वा अकीरमाणं पासित्ता सायं उसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरति, सायं० प० २ ममं एवं वयासी–से गयमेयं भगवं !, गयमेयं भगवं !" [५३] तदनन्तर मंखलिपुत्र गोशालक ने मुझ से यों पूछा "भगवन् ! इस जुओं के शय्यातर ने आपको १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २ (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. ७००-७०१ २. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६६८ (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २३९२-२३९३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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