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________________ पन्द्रहवाँ शतक ४५३ विवेचन–प्रस्तुत छह सूत्रों (सू. २४ से २९ तक) में शास्त्रकार ने विजय गाथापति के यहाँ हुए भगवान् महावीर के प्रथम मासक्षमण पारणे का, उसके प्रभाव से प्रकट हुए पांच दिव्यों का तथा विजय गाथापति की उस निमित्त से हुई सार्वजनिक प्रशंसा से प्रभावित गोशालक द्वारा भगवान् का समर्थन न होते हुए भी उनके शिष्य बनाने का वृतान्त प्रस्तुत किया है। ___ कठिन शब्दार्थ—अडमाणे-भिक्षाटन करते हुए। एज्जमाणं-आते हुए। अब्भुट्टेति—उठा। पच्चोरुभति—उतरा। पाउयाओ ओमुयइ—पादुकाएँ निकाली। अंजलिमउलियहत्थे—दोनों हाथ जोड़ कर। दव्वसुद्धेणं-द्रव्य–ओदनादि के शुद्ध-उद्गमादिदोषरहित होने से। दायगसुद्धणं—दाता के शुद्धआशंसा आदि दोषों से रहित होने से। पडिगाहगसुद्धणं—प्रतिग्राहक-आदाता (पात्र) के शुद्ध—किसी प्रकार के प्रतिफल या स्पृहा से रहित होने से।तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं-त्रिविध-मन-वचन-काया की तथा तीन करण-कृत-कारित-अनुमोदित की शुद्धि से। दसद्धवण्णे कुसुमे दस के आधे—पांच वर्ण के फूल। चेलुक्खेवे कए—ध्वजारूप वस्त्रों की वृष्टि की। घुढे उद्घोष किया। कयलक्खणे उत्तमलक्षणों वाला। णो आढामि-आदर नहीं दिया। णो परिजाणामि स्वीकार नहीं किया। तुसिणीए संचिट्ठामि मौन रहा। द्वितीय से चतुर्थ मासखमण के पारणे तक का वृतान्त, भगवान् के अतिशय से पुनः प्रभावित गोशालक द्वारा शिष्यताग्रहण ३०. तए णं अहं गोयमा ! रायगिहाओ नगराओ पडिनिक्खमामि, प० २ णालंदं बाडिरियं मझमझेणं जेणेव तंतुवायसाला तेणेव उवागच्छामि, उवा० २ दोच्च मासक्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरामि। [३०] इसके पश्चात्, हे गौतम ! मैं राजगृह नगर से निकला और नालन्दा पाड़ा से बाहर मध्य में होता हुआ उस तन्तुवायशाला में आया। वहाँ मैं द्वितीय मासक्षमण स्वीकार करके रहने लगा। ३१. तए णं अहं गोयमा ! दोच्चामासक्खमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, तं० प० २ नालंदं बाहिरियं मझमझेणं जेणेव रायगिहे नगरे जाव अडमाणे आणंदस्स गाहावतिस्स गिहं अणुप्पवितु। [३१] फिर, हे गौतम ! मैं दूसरे मासक्षमण के पारणे के समय तन्तुवायशाला से निकला और नालन्दा के बाहरी भाग के मध्य में से होता हुआ राजगृह नगर में यावत् भिक्षाटन करता हुआ आनन्द गाथापति के घर में प्रविष्ट हुआ । ३२. तए णं से आणंदे गाहावती ममं एजमाणं पासति, एवं जहेव विजयस्स, नवरं ममं विउलाए खजगविहीए 'पडिलाभेस्सामी' त्ति तुठे। सेसं तं चेव जाव तच्चं आसक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं, भा. २ (मू.पा.टि.), पृ. ६९४-६९५ २. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६६३-६६४ (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन), भा. ५ पृ. २३७९-२३८०
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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