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________________ पन्द्रहवाँ शतक ४४९ विचरण करने लगा। विवेचन—प्रस्तुत २०वें सूत्र में युवक गोशालक द्वारा स्वतंत्र रूप से चित्रपट लेकर मंखवृत्ति करने का वर्णन है। कठिन शब्दार्थ—विण्णायपरिणयमेत्ते—विज्ञान-कार्मिकज्ञान से परिणत-परिपक्वमति वाला। पाडिएक्कं प्रत्येक अर्थात्-पिता के फलक से पृथक् व्यक्तिगत फलक। चित्तफलगहत्थए—चित्रांकित फलक (पट या पटिया) हाथ में लेकर। मंखत्तणेण—मंखपन से, चित्र बता कर आजीविका करने वाले भिक्षुकों की वृत्ति से। गोशालक के साथ प्रथम समागम का वृतान्त : भगवान् के श्रीमुख से २१. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता अम्मापितीहिं देवत्ते गतेहिं एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमुपादाय मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइए। [२१] उस काल उस समय में, हे गौतम ! मैं तीस वर्ष तक गृहवास में रह कर, माता-पिता के दिवंगत हो जाने पर (आचारांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के १५ वें) भावना नामक अध्ययन के अनुसार (माता-पिता के जीवित रहते मैं श्रमण नहीं बनूँगा—इस प्रकार का अभिग्रह पूर्ण होने पर, मैं हिरण्य-सुवर्ण, सैन्य-वाहनादि का त्याग कर इत्यादि) यावत् एक देवदूष्य वस्त्र ग्रहण करके मुण्डित हुआ और गृहस्थवास को त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित हुआ। २२. तए णं अहं गोयमा ! पढमं वासं अद्धमासं अद्धमासेणं खममाणे अट्ठियगामं निस्साए पढमं अंतरवासं वासावासं उवागते ! दोच्च वासं मासंमासेणं खममाणे पुव्वाणुपुब्विं चरमाणे गामाणुगामंते दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे जेणेव नालंदाबाहिरिया जेणेव तंतुवायसाला तेणेव उवागच्छामि, ते. उवा० २ अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हामि, अहा० ओ० २ तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासवासं उवागते। तए णं अहं गोयमा ! पढमं मासक्खमणं उवसंपतिज्जत्ताणं विहरामि। [२२] तत्पश्चात् हे गौतम ! मैं (दीक्षा ग्रहण करने के) प्रथम वर्ष में अर्द्धमास-अर्द्धमास क्षमण (पाक्षिक तप) करते हुए अस्थिक ग्राम की निश्रा में, प्रथम वर्षाऋतु के अवसर (अन्तर) पर वर्षावास के लिए आया। दूसरे वर्ष में मैं मास-मास-क्षमण (एक मासिक तप) करता हुआ, क्रमशः विचरण करता और १. (क) 'विज्ञानं कार्मणे ज्ञाने'-हैमनाममाला (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६६१ (ग) भगवती. (हिन्दीविवेचन), भा. ५ पृ. २३७४ २. "एवं जहा भावणाए त्ति आचारद्वितीयश्रुतस्कन्धस्य पञ्चदशेऽध्ययने। अनेन चेदं सूचितम्-समत्तपइण्णे 'नाहं समणो होहं अम्मपियरम्मि जीवंते'त्ति समाप्ताभिग्रह इत्यर्थः । चिच्चा हिरण्णं चिच्चा सुव्वणं चिच्चा बलं इत्यादीति" अवृ.३।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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