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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
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अम्ब परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में भोजन करता है तथा रहता है, ( क्या सत्य है ? इत्यादि प्रश्न) ।
[ २२ उ.] हाँ गौतम ! यह सत्य है; इत्यादि औपपातिकसूत्र में कथित अम्बड - सम्बन्धी वक्तव्यता, यावत् महर्द्धिक दृढप्रतिज्ञ होकर सर्व दुःखों का अन्त करेगा। (यहाँ तक कहना चाहिए ।)
विवेचन — श्री गौतमस्वामी ने जब यह सुना कि कम्पिलपुर में अम्बड परिव्राजक एक साथ एक ही समय में सौ घरों में रहता हुआ सौ घरों में भोजन करता है, तब उन्होंने भगवान् से इस विषय में पूछा कि क्या यह सत्य है ? भगवान् ने कहा- हाँ, गौतम ! अम्बड को वैक्रियलब्धि प्राप्त है । उसी के प्रभाव से वह जनता को विस्मित- चकित करने के लिए एक साथ सौ घरों में रहता है और भोजन भी करता है । तत्पश्चात् गौतमस्वामी ने पूछा- भगवन् ! क्या अम्बड परिव्राजक आपके पास प्रव्रज्या ग्रहण करेगा ? भगवान् ने कहा—ऐसा सम्भव नहीं है । यह केवल जीवाजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता (सम्यक्त्वी) होकर अन्तिम समय में यावज्जीवन अनशन करेगा और काल करके ब्रह्मलोककल्प में उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में दृढप्रतिज्ञ नामक महर्द्धिक के रूप में जन्म लेगा और चारित्र - पालन करके अन्त समय में अनशनपूर्वक मर कर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगा यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा। यह औपपातिकसूत्रोक्त वक्तव्यता का आशय है ।
अव्याबाध देवों की अव्याबाधता का निरूपण
२३. [ १ ] अत्थिं णं भंते! अव्वाबाहा देवा, अव्वाबाहा देवा ?
हंता अस्थि ।
[२३-१ प्र.] भगवन् ! क्या किसी को बाधा - पीडा नहीं पहुँचाने वाले अव्याबाध देव हैं ?
[२३ - १ उ.] हाँ, गौतम ! वे हैं ।
[२] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति 'अव्वाबाहा देवा, अव्वाबाहा देवा ? '
गोमा ! पभू णं एगमेगे अव्वाबाहे देवे एगमेगस्स पुरसिस्स एगमेगंसि अच्छिपत्तंसि दिव्वं देविद्धिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्तए, णो चेव णं तस्स पुरिसस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएति, छविच्छेयं वा करेति, एसुहुमं च णं उवदंसेज्जा। से तेणट्टेणं जाव अव्वाबाहा देवा, अव्वाबाहा देवा ।
[२३-२ प्र.] भगवन् ! अव्याबाधदेव, अव्याबाधदेव किस कारण से कहे जाते हैं ?
[ २३-२ उ.] गौतम ! प्रत्येक अव्याबाधदेव, प्रत्येक पुरुष की, प्रत्येक आँख की अपनी (पलक) पर दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य देवानुभाव ( प्रभाव) और बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्यविधि दिखलाने में १. (क) औपपातिक सूत्र. ४०, पत्र ९६ - ९९ ( आगमोदय समिति) (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५३