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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं जाव' अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं तस्स णं नेमिपडिरूवगस्स उवरिं बहुसमरणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' मणीणं फासो । तस्स णं नेमिपडिरूवगस्स बहुमज्झदेसभागे तत्थ णं महं एगं पासायवडेंसगं विउव्वति, पंच जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं, अड्डाइज्जाइं जोयाणसयाइं विक्खंभेणं अब्भुग्गमूसिय० वण्णओ जाव' पडिरूवं । तस्स णं पासायवडें सगस्स उल्लोए पउमलयाभत्तिचित्ते जाव पडिरूवे । तस्स णं पासायवडेंसगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव मणीणं फासो | मणिपेढिया अट्ठजोयणिया जहा वेमाणियाणं । तीसे
मणिपेढया वरं महं एगे देवसयणिज्जे विउव्वति । सयणिज्जवण्णओ' जाव पडिरूवे । तत्थ णं से सक्के देविंदे देवराया अट्ठहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, दोहि य अणिएहिं – नट्टाणिएण य गंधव्वाणिण य—सद्धिं महयाहयनट्ट जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति ।
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[६ प्र.] भगवन् ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र भोग्य मनोज्ञ दिव्य स्पर्शादि विषयभोगों का उपभोग करना चाहता है, तब वह किस प्रकार (उपभोग) करता है।
[६ उ.] गौतम ! उस समय देवेन्द्र देवराज शक्र, एक महान् चक्र के सदृश गोलाकार ( नेमिप्रतिरूपक) स्थान की विकुर्वणा करता है, जो लम्बाई-चौड़ाई में एक लाख योजन होता है। उसकी परिधि (घेरा) तीन लाख ( तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्तावीस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष्य और कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल होती है। चक्र के समान गोलाकार उस स्थान के ऊपर अत्यन्त समतल एवं रमणीय भूभाग होता है, (उसका वर्णन समझ लेना चाहिए) यावत् मणियों का मनोज्ञ स्पर्श होता है; (यहाँ तक कहना चाहिए ।) (फिर) उस चक्राकार स्थान के ठीक मध्यभाग में एक महान् प्रासादावतंसक (प्रासादों में आभूषण रूप श्रेष्ठ भवन) की विकुर्वणा करता है। जो ऊंचाई में पांच सौ योजन होता है। उसक विष्कम्भ (विस्तार) ढाई सौ योजन होता है। वह प्रासाद अभ्युद्गत (अत्यन्त ऊँचा) और प्रभापुञ्ज से व्याप्त होने से मानो वह हँस रहा हो, इत्यादि
१. जाव पद सूचक पाठ— "सोलस य जोयणसहस्साइं दो य सयाई सत्तावीसाहियाई कोसतियं अट्ठावीसाहियं धणुसयं तेरस य अंगुलाई ति " अवृ० ॥
२. जाव पद सूचक पाठ— " से जहानामए आलिंगपोक्खरे इ वा मुइंगपोक्खरे इ वा इत्यादि । . ...... तथा सच्छाएहिं सप्पभेहिं समरीईहिं सउज्जोएहिं नाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं उवसोहिए, तं जहा — किण्हेहिं ५ इत्यादि वर्णगन्ध-रस-स्पर्शवर्णको मणीनां वाच्य इति " अवृ० ॥
३.
जाव पद सूचक पाठ— "पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे त्ति " अवृ० ॥
४. मणिपीठिका का वर्णन — " तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगं मणिपेढियं विव्वाइ, साणं मणिपेढिया अट्ठ जोयणाई आयामविक्खभेणं पन्नत्ता, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूव त्ति ।"
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५. शय्यावर्णन — तस्स णं देवसयणिज्जस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्ण.......... , तं "जहा— नाणमणिमया पडिपाया, सोवणिया पाया, नाणामणिमयाइं पायसीसगाई इत्यादिरित" अवृ० ॥
‘जाव' पद सूचक पाठ—महयाहयनट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं त्ति ।
६.